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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ३-४
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३. आस्रव जीव है (दो० २-४) :
इन दोहों में दो बातें कही गयी हैं : (१) आस्रव जीव है, अजीव नहीं। (२) आस्रव को अजीव मानना मिथ्यात्व है। इन दोनों पर नीचे क्रमशः प्रकाश डाला जाता है :
(१) आस्रव जीव है : पहले बताया जा चुका है कि आस्रव जीव-परिणाम हैं। जीव-परिणाम जीव से भिन्न नहीं, जीव ही है अतः आस्रव जीव है। जिस तरह नौका का छिद्र नौका से और मकान का द्वार मकान से पृथक् नहीं होता वैसे ही आस्रव जीव से भिन्न नहीं। आस्रव जीव है यह एक आंकिक सत्य है। इसे निम्न रूप में रखा जा सकता
आस्रव = जीव-परिणाम जीव-परिणाम = जीव
.: आस्रव = जीव इस विषय में विस्तृत विवेचन बाद में दिया गया है।
(२) आस्रव को अजीव मानना मिथ्यात्व है : मुख्य पदार्थ दो हैं-एक जीव और दूसरा अजीव । नौ पदार्थ में अन्य सात की इन्हीं दो पदार्थों में परिगणना होती है। कई आस्रव को जीव पदार्थ के अन्तर्गत मानते हैं और कई अजीव पदार्थ के अन्तर्गत । स्वामीजी कहते हैं : “आस्रव सहज तर्क से जीव सिद्ध होता है। आगम में भी आस्रव को जीव कहा गया है। ऐसी परिस्थिति में आस्रव को अजीव मानना विपरीत श्रद्धान है-मिथ्यात्व है। आगम में कहा है-जो जीव को अजीव श्रद्धता है वह मिथ्यात्वी है और जो अजीव को जीव श्रद्धता है वह भी मिथ्यात्वी है। अतः जीव होने पर भी आस्रव को अजीव मानना मिथ्यात्व है।
इस विषय का भी विस्तृत विवेचन बाद में दिया गया है।
४. ढाल का विषय (दो० ४-५) :
आस्रव जीव है या अजीव ? इस प्रश्न का समाधान ही प्रस्तुत ढाल का मुख्य विषय है। इन दोहों में स्वामीजी इसी प्रश्न के विवेचन करने की प्रतिज्ञा करते हैं । इस चर्चा के पूर्व आस्रव के भेद और उनके सामान्य स्वरूप कथन की प्रतिज्ञा भी स्वामीजी ने यहाँ की है।