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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ६
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आस्रव के २० भेद :
___ आस्रव के २० बीस भेदों को मानने वाली परम्परा का उल्लेख पहले आया है। उन बीस भेदों में आरम्भ के पाँच भेद तो वही उक्त मिथ्यात्वादि हैं। अवशेष १५ योग आस्रव के भेदमात्र हैं। इन भेदों को भी उदाहरण-स्वरूप ही कहा जा सकता है क्योंकि मन, वचन और काय की असंख्य, अनन्त प्रवृत्तियाँ हो सकती हैं। २० भेदों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है :
१. पूर्ववत्
प्राणातिपात आस्रव : मन, वचन, काय और करने, कराने, अनुमोदन के
विविध भङ्गों से जीव हिंसा करना। ७. मृषावाद आस्रव : उपर्युक्त तीन करण एवं तीन योग के विविध भङ्गों से
झूठ बोलना। ८. अदत्तादान आस्रव : उपर्युक्त तीन करण एवं तीन योग के विविध भङ्गों
से चोरी करना। ६. मैथुन आस्रव : उपर्युक्त तीन करण एवं तीन योग के विविध भङ्गों से मैथुन
का सेवन करना। १०. परिग्रह आस्रव : उपर्युक्त तीन करण एवं तीन योग के विविध भङ्गों से
परिग्रह रखना। ११. श्रोत्रेन्द्रिय आस्रव : कान को शब्द सुनने में प्रवृत्त करना। १२. चक्षुरिन्द्रिय आस्रव : आँखों को रूप देखने में प्रवृत्त करना। १३. घ्राणेन्द्रिय आस्रव : नाक को गंध सूंघने में प्रवृत्त करना। १४. रसनेन्द्रिय आस्रव : जिहा को रस-ग्रहण करने में प्रवृत्त करना। १५. स्पर्शनेन्द्रिय आस्रव : शरीर को स्पर्श करने में प्रवृत्त करना। १६. मन आस्रव : मन से नाना प्रकार की प्रवृत्ति करना। १७. वचन आस्रव : वचन से नाना प्रकार की प्रवृत्ति करना। १८. काय आस्रव : काया से नाना प्रकार की प्रवृत्ति करना। १६. भण्डोपकरण आस्रव : वस्तुओं को यतनापूर्वक रखना उठाना। २० शुचिकुशाग्रमात्र आस्रव : शुचि, कुशाग्र आदि के सेवन जितनी भी प्रवृत्ति।