________________
आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी : ६
.
४५७
पराक्रम का स्फोटन करता है तब आत्म-प्रदेशों में हलन-चलन होती है। प्रदेश आगे-पीछे चलते हैं यह नामकर्म के संयोग से होता है। यह योग आत्मा है।
“मोहकर्म के उदय से और नामकर्म के संयोग से जीव के प्रदेशों का चञ्चल होना सावध योग है। यह भी योग आत्मा है। ।
“मोहकर्म के उदय बिना नामकर्म के संयोग से जीव के प्रदेशों का चञ्चल होना निरवद्य योग है। यह भी योग आत्मा है।
“मोहकर्म के बिना नामकर्म के उदय से जीव प्रदेशों का चञ्चल होना निरवद्य योग है।
"मोहकर्म के बिना नामकर्म की प्रकृति को उदीर कर जीव के प्रदेशों का चलना भी निरवद्य योग है।
"मोहकर्म के उदय से नामकर्म के संयोग से जीव के प्रदेशों का चलना सावद्य योग है। उससे पाप लगता है।
“मोहकर्म के उदय से उदीर कर नामकर्म के संयोग से जीव के प्रदेशों को चलाना भी सावध योग है। उससे पाप लगता है।
“जीव के प्रदेशों का चलना और उदीर कर चलाना उदय भाव है। सावद्य-उदय-भाव पाप का कर्ता है। निरवद्य उदय-भाव पुण्य का कर्ता है।
“सावघ योगों से पुण्य लगता है और सावद्य योगों से ही पाप लगता है-पुण्य और पाप दोनों सावध से लगते हैं-यह बात नहीं मिलती। सावद्य योगों से पाप लगता है निरवद्य योगों से पुण्य लगता है-ऐसा ही सूत्रों में स्थान-स्थान पर उल्लेख है।
"जो सावध योग से पुण्य मानते हैं उनके हिसाब से धन्ना अनगार को तैंतीस सागर के पुण्य उत्पन्न हुए अतः उनके सावध योग वर्ते। जिनके तीर्थङ्कर नामकर्म आदि बहुत पुण्य हुए उनके सावध योग भी बहुत वर्ते । थोड़ा सावध योग रहा है उनके थोड़े पुण्य उत्पन्न हुए। यह श्रद्धान कितना विपरीत है यह स्वयं स्पष्ट है।" (२) प्रवर्तन योग से निवर्तन योग अन्य हैं :
स्वामीजी के सामने अन्य मतवाद यह आया-“मन योग, वचन योग और काय योग प्रवर्तन योग हैं। निवर्तन योग अनेक हैं; निवर्तन योग शुभयोग संवर हैं।"
स्वामीजी ने उत्तर देते हुए कहा-“वे कौन से योग हैं जो शुभयोग संवर हैं ? उनके नाम क्या हैं ? उनकी स्थिति बताओ। उनका स्वभाव बतलाओ । पंद्रह योगों
१. टीकम डोसी की चर्चा
'जोगां री चर्चा' से प्रायः इसी भाव का उद्धरण पृ० ४१५ (अन्तिम अनुच्छेद)-४१६ में दिया गया है। पाठक उसे भी देख लें।