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नव पदार्थ
४८. माठा २ किरतब ने माठी २ करणी, सर्व जीव व्यापारो रे।
वले जिण आज्ञा बारला सर्व कामां, ए सगला छे आश्रव दुवारो रे।।
४६. मोह करम उदे जीव रे च्यार संज्ञा, ते तो पाप करम ग्रहे तांणो रे।
पाप करम ने ग्रहे ते आश्रव, ते तो लषण जीव रा जांणो रे।।
५०. उठांण कम बल वीर्य पुरषाकार प्राकम, यारा सावध जोग व्यापारो रे।
तिण सूं पाप करम जीव रे लागे छे, ते जीव , आश्रव दुवारो रे।।
५१. उठाण कम बल वीर्य पुरषाकार प्राकम, यारा निरवद किरतब व्यापारो रे।
त्यांसू पुन करम जीव रे लागें छे, ते पिण जीव , आश्रव दुवारो रे।।
५२. संजती असंजती ने संजतासंजती, ते तो संवर आश्रव दुवारो रे।
ते संवर ने आश्रव दोनूं इ. तिणमें संका नहीं , लिगारो रे।।
५३. इम विरती अविरती ने विरताविरती, इम पचखांणी पिण जांणों रे।
इम पिंडीया बाला ने बाल पिंडीया, जागरा सुत्ता एम पिछांणो रे।।
५४. वले संबूड़ा असंबूड़ा ने संबूड़ा संबूड़ा, धमीया धमठी तांमो रे।
धम्मववसाइया इमहिज जाणो, तीन-तीन बोल छे तांमो रे।।
५५. ऐ सगला बोल , संवर ने आश्रव, त्यांने रूडी रीत पिछांणो रे।
कोइ आश्रव नें अजीव कहें छे, ते पूरा , मूढ अयांणो रे ।