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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ६
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३६. आज्ञाव्यापादिकीक्रिया आस्रव : चारित्रमोहनाय के उदय से आवश्यक आदि
के विषय में शास्त्रोक्त आज्ञा को न पाल सकने के कारण अन्यथा प्ररूपणा
करना। ३७. अनाकांक्षाक्रिया आस्रव : धूर्तता और आलस्य के कारण प्रवचन में उपदिष्ट
कर्तव्य विधि में प्रमादजनित अनादर। ३८. प्रारम्भक्रिया आस्रव : छेदन, भेदन, विसर्जन आदि क्रिया में स्वयं तत्पर
रहना और दूसरे के आरम्भ करने पर हर्षित होना। ३६. पारिग्राहिकीक्रिया आस्रव : परिग्रह का विनाश न हो इस हेतु से की गई
क्रिया। ४०. मायाक्रिया आस्रव : ज्ञान, दर्शन आदि के विषय में निकृति-बन्धन-छल
करना। ४१. मिथ्यादर्शनक्रिया आस्रव : मिथ्यादृष्टि से क्रिया करने-कराने में लगे हुए
पुरुष को प्रशंसा आदि द्वारा दृढ़ करना ।
. १. आगम में इसका नाम 'आज्ञापनी' है। आज्ञा करने से होने वाली क्रिया। 'आणवणिया'
आज्ञापनस्य-आदेशनस्येयमाज्ञापनमेव वा । आदेशनरूप क्रिया (ठाणाङ्ग २.६० टीका) ।
उमास्वाति ने इसका नाम आनयनक्रिया दिया है (तत्त्वा० ६.६ भाष्य)। २. ठाणाङ्ग २.६० में इसका नाम अनवकांक्षाप्रत्यया दिया है। अपने अथवा दूसरे के शरीर
की अनवकांक्षा-अनपेक्षा। अणवकंखवत्तिया किरिया दुविहा पं० तं० आयशरीर
अणवकंखवत्तिया चेव परसरीरअणवकंखवत्तिया चेव। ३. आगम में इसका नाम आरंभिया 'आरंभिकीक्रिया' दिया है। आरम्भणमारम्भः तत्र भवा।
आगम में इसके दो भेद कहे गये हैं। जिससे जीवों का उपमर्दन हो उसे जीवारम्भक्रिया और जिससे अजीव वस्तुओं का आरम्भ हो उसे अजीवारम्भक्रिया कहते हैं (ठाणाङ्ग
२.६० टीका)। ४. 'परिग्गहिया'-परिग्रहे भवा परिग्रहिकी-परिग्रह में होने वाली। आगम में जीव और
अजीव सम्बन्ध से इसके भी दो भेद बतलाये गये हैं (ठाणाङ्ग २.६० तथा टीका)। ५. 'मायावत्तिया चेव' माया-शाठ्यं प्रत्ययो-निमित्तं यस्याः कर्मबन्धक्रियाया व्यापारस्य वा
सा। छल या कपट रूप क्रिया (ठाणाङ्ग २.६० टीका)। आगम में इसका नाम 'मिच्छादसणवत्तिया'-मिथ्यादर्शनप्रत्यया मिलता है। मिथ्यादर्शनंमिथ्यात्वं प्रत्ययो यस्याः सा। आगम में इसके दो भेद बताये हैं। अप्रशस्त आत्मभाव को प्रशस्त देखना--आत्मभाववंकनता है और कूटलेख आदि से दूसरे को ठगनापरभाववंकनता है (ठाणाङ्ग २.६० टीका)।