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१.
नव पदार्थ
इसका अर्थ इस प्रकार भी मिलता है - 'बाह्यं वस्तु प्रतीत्य - आश्रित्य भवा प्रातीत्यिकी' । बाह्य वस्तु का आश्रय लेकर जो क्रिया होती है । (ठाणाङ्ग २.६० टीका) ।
२. इसके स्थान में आगम में 'सामन्तोवणिवाइया' - सामन्तोपनिपातिकीक्रिया का उल्लेख है। अपने रूपवान् घोड़े आदि और निर्जीव रथ आदि की प्रशंसा सुन कर हर्षित होने रूप क्रिया । (ठाणाङ्ग २.६० ५.२.४१६ और टीका)
३. अनाभोगप्रत्यया । उपयोग रहित होकर वस्तुओं को ग्रहण करना अथवा उपयोग रहित होकर प्रमार्जन करना । ठा० २.६० में कहा है - अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पं० तं० अणाउत्तआइयणता चेव अणाउत्तपमज्जणता चेव ।
३०. प्रात्ययिकीक्रिया आस्रव: प्राणातिपात के अपूर्व-नये अधिकरणों का उत्पादन' । ३१. समन्तानुपातक्रिया आस्रव: मनुष्य, पशु आदि के जाने-आने, उठने-बैठने के स्थानों में मल का त्याग ।
३२. अनाभोगक्रिया आस्रव: अप्रमार्जित और अशोधी हुई भूमि पर काय आदि का निक्षेप' ।
३३. स्वहस्तक्रिया आस्रव: जो क्रिया दूसरों द्वारा करने की हो उसे अभिमान या रोषवश स्वयं कर लेना ।
३४. निसर्गक्रिया आस्रव: पापादान आदि रूप प्रवृत्ति विशेष की अनुमति अथवा पापार्थ में प्रवृत्त का भावतः अनुमोदनः ।
३५. विदारण क्रिया आस्रव : अन्य द्वारा आचरित अप्रकाशनीय सावद्य आदि कार्यों का प्रकाशन' ।
४. इसके आगम में दो भेद कहे गये हैं- जीव स्वाहस्तिकी क्रिया - अपने हाथ से गृहीत तीतर आदि द्वारा दूसरे जीव को मारना । अथवा अपने हाथ से जीव का ताड़न । अजीवस्वाहस्तिकी क्रिया - अपने हाथ से गृहीत खड्ग आदि निर्जीव वस्तु द्वारा जीव को मारना अथवा अजीव का ताड़न करना (ठाणाङ्ग २.६० टीका ) ।
६.
५. 'नेसत्थिया' निसर्जनं निसृष्टं, क्षेपणमित्यर्थः तत्र भवा तदेव वा । अर्थात् यन्त्र द्वारा जीव और अजीव को दूर करने रूप क्रिया जैसे कुएँ से जल निकालना अथवा धनुष बन्दूक आदि से गोली व बाण फेंकना । (ठाणाङ्ग २.६० और ५.२.४१६ टीका) ।
ठाणाङ्ग २.६० टीका में विदारिणी अथवा वैतारिणी ऐसे नाम दिये हैं। जीव-अजीव को विदीर्ण करना विदारिणी क्रिया है। वह जीव को ठगता है ऐसा कहना अथवा गुण न • होने पर भी ठगने की दृष्टि से ऐसा कहना कि तू गुण में अमुक के समान है। जीव वैतारिणी क्रिया है । गुण न होने पर भी एक अचेतन वस्तु को दूसरी अचेतन वस्तु के समान कहना अजीव वैतारिणी क्रिया है ।