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आस्त्रव पदार्थ ( ढाल : १) : टिप्पणी ४४
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग- ये सब मोहनीयकर्म के उदय से होने वाले भाव हैं ।
आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं- "उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम और पारिणामिक भावों से युक्त भाव जीव-गुण हैं ।" जीव-गुण का अर्थ है जीव-भाव, जीव-परिणाम' । इससे मिथ्यात्वादि जीव- परिणाम सिद्ध होते हैं। जीव-परिणाम अरूपी नहीं होते ।
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स्वामीजी ने अन्यत्र कहा है- "उत्तराध्ययन में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य, उपयोग, सुख और दुःख-ये आठ लक्षण द्रव्य-जीव के कहे गये हैं पर द्रव्य-जीव के इनके सिवाय भी अनेक लक्षण हैं। सावद्य-निरवद्य गुण, मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग, आस्रव, संवर, निर्जरा, उदयनिष्पन्न सर्व भाव, उपशमनिष्पन्न सर्व भाव, क्षायक- निष्पन्न सर्व भाव और क्षयोपशमनिष्पन्न सर्व भाव- इन सबको द्रव्य-जीव के लक्षण समझना चाहिए ।"
जीव के लक्षण रूपी नहीं हो सकते ।
१.
पंचास्तिकाय १.५६ :
उदयेण उवसमेण य खयेण दुहिं मिस्सदेहिं परिणामे । जुत्ता ते जीवगुणा बहुसु य अत्थेसु विच्छिण्णा ।
२. जयसेन - जीवगुणाः जीवभावाः परिणामाः
३.
द्रव्य जीव भाव जीव की चर्चा