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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ६
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आचार्य पूज्यपाद ने मिथ्यात्व के अन्य पाँच भेद भी बतलाये हैं। वे इस प्रकार
(१) यही है, इसी प्रकार का है इस प्रकार धर्म और धर्मी में एकान्तरूप अभिप्राय रखना “एकान्त मिथ्यादर्शन' है। जैसे यह सब जगत परब्रह्म रूप ही है, या सब पदार्थ अनित्य ही हैं या नित्य ही हैं।
(२) सग्रन्थ को निर्ग्रन्थ मानना, केवली को कवलाहार मानना और स्त्री सिद्ध होती है इत्यादि मानना 'विपर्यय मिथ्यादर्शन' है।
यहां जो उदाहरण दिये हैं वे श्वेताम्बर-दिगम्बरों के मतभेद के सूचक हैं। श्वेताम्बरों की इन मान्यताओं को दिगम्बरों ने मिथ्यात्व रूप से प्रतिपादित किया है। इस मिथ्यात्व के सार्वभौम उदाहरण हैं जीव को अजीव समझना, अजीव को जीव समझना आदि (देखिए पृ० ३७३ टि० ६.१)।
(३) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिल कर मोक्षमार्ग हैं या नहीं इस प्रकार संशय रखना 'संशय मिथ्यादर्शन' है।
(४) सब देवता और सब मतों को एक समान मानना 'वैनयिक मिथ्यादर्शन' है। (५) हिताहित की परीक्षा रहित होना 'अज्ञानिक मिथ्यादर्शन' है।
मिथ्यात्व का अवरोध सम्यक्त्व से होता है। सम्यक्त्व का अर्थ है-सही दृष्टि, सम्यक् श्रद्धान। मिथ्यात्व आस्रव है। सम्यक्त्व संवर है। मिथ्यात्व से कर्म आते हैं। सम्यक्त्व से रुकते हैं।
मिथ्या श्रद्धान जीव करता है। अजीव नहीं कर सकता। मिथ्या श्रद्धा जीव का भाव-परिणाम है। १. तत्त्वा० ८.१ सर्वार्थसिद्धि :
तत्र इदमेव इत्थमेवेति धर्मिधर्मयोरभिनिवेश एकान्तः "पुरुष एवेदं सवम्" इति वा नित्य
एव वा अनित्य एवेति २. वही :
सग्रन्थो निर्ग्रन्थः; केवली कवलाहारी, स्त्री सिध्यतीत्येवमादिः विपर्ययः । ३. वहीः
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि किं मोक्षमार्गः स्याद्वा न वेत्यन्यतरपक्षापरिग्रहःसंशयः । ४. वही :
सर्वदेवतानां सर्वसमयानां च समदर्शनं वैनयिकम् वही : हिताहितपरीक्षाविरहोऽज्ञानिकत्वम्