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आस्त्रव पदार्थ ( ढाल : १)
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मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पाँच आस्रव द्वार हैं। ये पाँचों निश्चय ही जीव के परिणाम हैं ।
पदार्थों की अयथार्थ प्रतीति करना मिथ्यात्व आस्रव है । अयथार्थ प्रतीति साक्षात् जीव के ही होती है । मिथ्यात्व आस्रव का अवरोध करने वाला सम्यक्त्व संवर-द्वार है ।
अत्याग-भाव अविरति आस्रव है । अत्याग-भाव जीव के अशुभ परिणाम हैं। इस अविरति को निवारण करने वाली विरति संवर-द्वार है ।
जिन द्रव्यों का त्याग नहीं किया जाता है उनकी आशा- वांछा बनी रहती है । यह अविरति जीव का परिणाम है। इसके त्याग से संवर होता है।
प्रमाद आस्रव भी जीव का अशुभ परिणाम है। प्रमाद आस्रव के निरोध से अप्रमाद संवर होता है ।
उसी तरह कषाय आस्रव जीव का कषाय रूप परिणाम है। कषाय आस्रव से पाप लगते हैं। अकषाय से मिट जाते हैं।
सावद्य-निरवद्य योगों - व्यापारों को योग- आस्रव कहते हैं । अच्छे-बुरे परिणामों का अवरोध करना अयोग संवर है। इस प्रकार पाँच आस्रव-द्वार हैं ।
६. उपर्युक्त पाँचों आस्रव उन्मुक्त द्वार हैं, जिनसे कर्मों का आगमन होता है। ये पाँचों आस्रव द्वार जीव के परिणाम हैं और इन परिणामों के कारण कर्म लगते हैं ।
आस्रव द्वारों के नाम
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मिथ्यात्व आस्रव
अविरति आस्रव (गा० ४-५)
प्रमाद आस्रव
कषाय आस्रव
योग आस्रव
आस्रव द्वारों का सामान्य स्वभाव