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आस्त्रव पदार्थ (गल : १)
४२. पाँच आस्रव और अविरति अशुभ लेश्या के परिणाम हैं।
शुभ लेश्या जीव है। उसके लक्षण अजीव कैसे हो । सकते हैं ?
आसव अशुभ
लेश्या के परिणाम हैं
जीव के लक्षण अजीव नहीं होते
४३. जीव की पहचान उसके लक्षणों से करो। जीव के लक्षणों
को जीव समझो। जो जीव के लक्षणों को अजीव स्थापित करता है वह वीर के वचनों का उत्थापन करता है।
संज्ञाएँ जीव हैं
४४. जिन भगवान ने चार संज्ञाएँ कही हैं। वे भी पाप आने की
हेतु-उपाय हैं। पाप का उपाय आस्रव है और जो आस्रव है वह जीव द्रव्य है।
अध्यवसाय आखव
४५. जिन भगवान ने शुभ और अशुभ इन दोनों अध्यवसायों को
आस्रव कहा है। भले अध्यवसाय से पुण्य और बुरे अध्यवसाय से जघन्य पाप लगते हैं।
आर्त रौद्र-ध्यान
आस्रव हैं
४६. आर्त और रौद्र-ध्यान को भगवान ने आस्रव कहा है।
आस्रव पाप कर्म आने के द्वार हैं और जो द्वार हैं वे जीव के व्यापार हैं।
४७. जो पुण्य और पाप आने के द्वार हैं वे कर्मों के कर्ता हैं।
कमों का कर्ता आस्रव जीव है। उसको अज्ञानी ही अजीव कहते हैं।
कों के कर्ता
जीव हैं (गा० ४७-४८)
४८. जो आस्रव को अजीव जानता है वह मूर्ख की तरह पीपल
को बाँध कर खींचता है। जो कर्मों को लगाते हैं वे आस्रव हैं और वे निश्चय ही जीव द्रव्य हैं।
४६. स्वयं भगवान ने अपने मुँह से आस्रव को सँधना कहा है।
आस्रव सँधने से कौन-सा द्रव्य रुंधता है और कौन-सा द्रव्य स्थिर होता है ?
आसव-निरोध से क्या रुकता या स्थिर होता है?