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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १)
५०.
५१. शब्दादिक भोगों की अभिलाषा कौन करता है ? कषाय भाव कौन रखता है ? मनोयोग किसके होता है ? और कौन अपनी और परायी सोचता है ?
तत्त्व को विपरीत कौन जानता है और कौन उल्टी - मिथ्या खींचतान करता है ? हिंसा आदि का अत्यागी कौन होता है ? किसके आशा - वांछा लगी रहती है ?
५२. इन्द्रियों को कौन प्रवृत्त करता है, शब्दादिक को कौन ग्रहण करता है ? इन्द्रिय आदि की प्रवृत्ति आस्रव है और जो आस्रव है वह जीव द्रव्य है ।
५३. मुख से कौन बुरा बोलता है ? शरीर से कौन बुरी क्रियाएँ करता है ? ये सब कार्य द्रव्य के ही व्यापार हैं और पुद्गल इनके अनुगामी हैं ।
५४.
५६.
जीव के प्रदेश चलाचल (चंचल) हैं । उनको दृढ़तापूर्वक स्थिर करने से आस्रव द्रव्य का निरोध होता है । और तभी I संवर द्रव्य कायम होता है।
५५. जीव के प्रदेश चलाचले ( चंचल) होते हैं । सर्व प्रदेशों से कर्मों का प्रवेश होता है । सर्व प्रदेश कर्म ग्रहण करते हैं । सर्व प्रदेश कर्मों के कर्त्ता हैं ।
इन प्रदेशों को स्थिर करने वाला ही संवर-द्वार है । अस्थिर प्रदेश आस्रव हैं और वे निश्चय ही जीव द्रव्य हैं ३७ ।
५७. योग पारिणामिक और उदयभाव है इसीलिए योग को जीव कहा है। अजीव तो उदयभाव नहीं होता, यह सूत्र में जगह-जगह देखा जा सकता है ।
३६१
मिथ्या श्रद्धान
आदि आश्रव जीव के होते हैं
अतः जीव हैं
(गा० ५०-५३)
आस्रव का निरोध : संवर की उत्पत्ति
सर्व प्रदेश कर्मों के कर्त्ता हैं
संवर और आस्रव में अन्तर
योग जीव कैसे ?