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टिप्पणियाँ
१. आस्रव पदार्थ और उसका स्वभाव (दो० १)
इस दोहे में चार बातें कही गयी हैं : (१) पाँचवाँ पदार्थ आस्रव है।
(२) आस्रव पदार्थ को आस्रव द्वार कहते हैं । (३) आस्रव कर्म आने का द्वार है।
(४) आस्रव और कर्म भिन्न-भिन्न हैं - एक नहीं ।
नीचे इन बातों पर क्रमशः प्रकाश डाला जाता है :
(१) पाँचवाँ पदार्थ आस्रव है : श्वेताम्बर आगमों में नौ सद्भाव पदार्थों को गिनाते समय पाँचवें स्थान पर आस्रव का नामोल्लेख हैं । दिगम्बर आचार्यों ने भी नौ पदार्थों में पाँचवें स्थान पर इस पदार्थ का उल्लेख किया है । इस तरह श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों इस पदार्थ को स्वीकार करते हैं। जिस तरह तालाब में जल होने से यह सहज ही सिद्ध होता है कि उसके जल आने का मार्ग भी है वैसे ही संसारी जीव के साथ कर्मों का सम्बन्ध मानने लगने के बाद उन कर्मों के आने का मार्ग भी होना ही चाहिए, यह स्वयंसिद्ध है। कर्मों के आने का हेतु-मार्ग आस्रव पदार्थ है । इसीलिए आगम में कहा है : "मत विश्वास करो कि आस्रव नहीं है पर विश्वास करो कि आस्रव है ।"
(२) आस्रव पदार्थ को आस्रव द्वार कहते हैं : स्थानाङ्ग तथा समवायाङ्ग में
१.
२.
(क) उत्त० २८.१४
(ख) ठाणाङ्ग ९.३.६६५
(क) पञ्चास्तिकाय १०८
(ख) द्रव्यसंग्रह २.२८
३. सुयगडं २.५.१७ :
णत्थि आसवे संवरे वा णेवं सन्नं निवेसए । अस्थि आसवे संवरे वा एवं सन्नं निवेसए । ।