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आस्त्रव पदार्थ (टाल : १)
३४. “ योग जीव के व्यापार हैं और योग ही आस्रव-द्वार हैं। इस । तरह जो आस्रव हैं वे निःशंक रूप से जीव हैं। इसमें जरा
भी शंका मत करो।
३५. ' लेश्या शुभ और अशुभ कहीं गयी है। उन्हें भी जीव द्रव्य लेश्या जीव का में शुमार किया गया है। लेश्या जीव का उदयभाव है अतः .
परिणाम है
(गा० ३५-३६) जीव है। लेश्या जीव का परिणाम है।
३६. लेश्या आत्मा को कर्मों से लिप्त करती है-अर्थात् जीव । प्रदेशों को लिप्त करती है। यह भी आस्रव है-जीव है ।
इसमें शंका नहीं। इसके असंख्यात स्थानक कहे गये हैं।
३७. - मिथ्यात्व, अव्रत और कषाय ये जीव के उदयभाव हैं। · मिथ्यात्वादि जीव . इसीलिए कषाय-आत्मा कही गयी है। इनको जीव-परिणाम
के उदयभाव हैं
कर कहा गया है।
३८.. ये योग आदि पाँचों आस्रव-द्वार हैं और कर्मों के कर्ता हैं। - - ये पाँचों ही साक्षात् जीव हैं। इसमें जरा भी शंका नहीं है।
योग आदि पाँचों . आस्रव जीव हैं
(गा० ३८-४८)
३६. आस्रव जीव के परिणाम हैं ऐसा स्थानाङ्ग के नवें स्थानक
में कहा है। जीव के परिणाम जीव होते हैं; उन्हें अज्ञानी अजीव कहते हैं।
आस्रव जीव के परिणाम हैं ... (गा० ३६-४०)
४०. स्थानाङ्ग सूत्र के नवें स्थानक में जो कर्मों को ग्रहण
करता है उसे आस्रव कहा है। जो कर्मों को ग्रहण करता है वह आस्रव जीव है। जो ग्रहण हो कर आते हैं वे पुद्गल . अजीव हैं२८ । स्थानाङ्ग सूत्र के दसवें स्थानक में दस बोल कहे हैं। मिथ्यात्व आस्रव
जीव है "उनको उल्टा श्रद्धना मिथ्यात्व आस्रव है। इन बोलों को . उल्टा कौन श्रद्धता है ?. जो उल्टा श्रद्धता है वह मिथ्यात्व आश्रव साक्षात् जीव है |
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