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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १)
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उत्त०२६.३७. ५३-५५.७२
१८. उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन में क्रमशः मनोयोग,
वचनयोग और काययोग आस्रव के रूँधने की बात आई है। वहाँ मन, वचन और काय के शुद्ध योगों के संवरण की बात है।
१६.
प्रश्नव्याकरण
प्रश्नव्याकरण सूत्र में पाँच आस्रव-द्वार और पाँच संवर-द्वार कहें गये हैं और इन दोनों का वहाँ बहुत विस्तार से वर्णन
२०. स्थानाङ्ग के ५वें स्थानक में आस्रव-द्वार-प्रतिक्रमण का
उल्लेख है। प्रतिक्रमण कर लेने पर आस्रव-द्वार बन्द हो जाते हैं, जिससे फिर पाप-कर्म नहीं लगते ।
स्थानाङ्ग ५.३.४६७
भगवती
२१-२२ भगवान ने आस्रव को फूटी नौका का उदाहरण देकर
समझाया है। इसका विस्तार भगवती सूत्र के तृतीय शतक के तृतीय उद्देशक तथा उसी सूत्र के पहिले शतक के छठे उद्देशक में है।
१.६
२३.
और भी बहुत से सूत्रों में आस्रव-द्वार का वर्णन आया है। सबका एक ही न्याय है। यहाँ पूरा कैसे कहा जा सकता
आस्रव जीव कैसे है?
२४. आस्रव-द्वार का वर्णन जगह-जगह आया है। आस्रव जीव
के परिणाम हैं । उनको जो अजीव कहते हैं वे मिथ्यात्वी हैं और खोटी श्रद्धा के पक्षपाती हैं।
२५.
जो कर्मों को ग्रहण करता है वह जीव द्रव्य है। कर्म आस्रव के द्वारा ग्रहण होते हैं। ये आस्रव जीव के परिणाम हैं। जीव के परिणामों से कर्म ग्रहण होते हैं |
आस्रव जीव के परिणाम है