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________________ आस्त्रव पदार्थ ( ढाल : १) २. ४. ६. ७. ८. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पाँच आस्रव द्वार हैं। ये पाँचों निश्चय ही जीव के परिणाम हैं । पदार्थों की अयथार्थ प्रतीति करना मिथ्यात्व आस्रव है । अयथार्थ प्रतीति साक्षात् जीव के ही होती है । मिथ्यात्व आस्रव का अवरोध करने वाला सम्यक्त्व संवर-द्वार है । अत्याग-भाव अविरति आस्रव है । अत्याग-भाव जीव के अशुभ परिणाम हैं। इस अविरति को निवारण करने वाली विरति संवर-द्वार है । जिन द्रव्यों का त्याग नहीं किया जाता है उनकी आशा- वांछा बनी रहती है । यह अविरति जीव का परिणाम है। इसके त्याग से संवर होता है। प्रमाद आस्रव भी जीव का अशुभ परिणाम है। प्रमाद आस्रव के निरोध से अप्रमाद संवर होता है । उसी तरह कषाय आस्रव जीव का कषाय रूप परिणाम है। कषाय आस्रव से पाप लगते हैं। अकषाय से मिट जाते हैं। सावद्य-निरवद्य योगों - व्यापारों को योग- आस्रव कहते हैं । अच्छे-बुरे परिणामों का अवरोध करना अयोग संवर है। इस प्रकार पाँच आस्रव-द्वार हैं । ६. उपर्युक्त पाँचों आस्रव उन्मुक्त द्वार हैं, जिनसे कर्मों का आगमन होता है। ये पाँचों आस्रव द्वार जीव के परिणाम हैं और इन परिणामों के कारण कर्म लगते हैं । आस्रव द्वारों के नाम ३४६ मिथ्यात्व आस्रव अविरति आस्रव (गा० ४-५) प्रमाद आस्रव कषाय आस्रव योग आस्रव आस्रव द्वारों का सामान्य स्वभाव
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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