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ढाल : १
(मेघकुमर हाथी रा भव में ...) १. घनघातीया च्यार कर्म जिण भाष्या, ते अभपडल बादल ज्यूं जाणो। त्यां जीव तणा निज गुण ने विगास्या, चंद बादल ज्यूं जीव कर्म ढकाणो।।
पाप कर्म अन्तःकरण ओलखीजे* ||
२. ग्यांनावर्णी ने दर्शनावर्णीय, मोहणी ने अन्तराय छै ताम।
जीव रा जेहवा जेहवा गुण विगास्या, तेहवा तेहवा कर्मी रा नाम ।।
३. ग्यांनावर्णी कर्म ग्यांन आवा न दे, दर्शणावर्णी दर्शण आवे दे नांही।
मोह कर्म जीव में करे मतवाालो, अंतराय आछी वस्तु आडी छै मांही।।
४. ए कर्म तो पुद्गल रूपी चोफरसी, त्यांने खोटी करणी करे जीव लगाया।
त्यांरा उदा सूं खोटा खोटा जीव रा नाम, तेहवा इज खोटा नाम कर्म रा कहाया।।
५. यां च्यारूं कर्मां री जुदी जुदी प्रकृत, जूआ जूआ छै त्यांरा नाम । ___ त्यांतूं जूआ जुआ जीव रा गुण अटक्या, त्यांरो थोडो सो विस्तार कहूं धूं ताम ।।
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प्रत्येक गाथा के अन्त में इसकी पुनरावृत्ति है।