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पाप पदार्थ : टिप्पणी ३
ર૬૬
आत्मा के साथ बंधे हुए ये कर्म सामान्य तौर पर सुख-दुःख के कारण हैं। संगति से कर्म ही संसार-बंधन उत्पन्न करते हैं। बिछुड़ने पर ये ही मुक्ति प्रदान करते हैं । जिन कर्मों से बद्ध जीव संसार-भ्रमण करता है वे आठ हैं-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म । इन आठ कर्मों के दो वर्ग होते हैं-(१) घाति कर्म और (२) अघाति कर्म । घाति कर्म चार हैं और अघाति कर्म भी चार । घातिअघाति प्रकृति की अपेक्षा से आठ कर्मों का विभाजन इस प्रकार होता है :
घाति कर्म
अघाति कर्म
१. ज्ञानावरणीय कर्म . २. दर्शनावरणीय कर्म
वेदनीय कर्म
३. ........................ . ४. मोहनीय कर्मः ..
ॐ
......................
.....................
आयुष्य कर्म नाम कर्म गोत्र कर्म
ॐ
८. अन्तराय कर्म
जो कर्म आत्म से बंध कर उसके स्वाभाविक गुणों की घात करते हैं उन्हें घाति कर्म कहते हैं। जिस प्रकार बादल सूर्य और चन्द्रमा के प्रकाश को आच्छादित कर उनकी
१. परमात्मप्रकाश १,६४-६५
दुक्खु वि सुक्खु वि बहु-विहउ जीवहँ कम्मु जणेइ। अप्पा देखइ मुणइ पर णिच्छउ एउँ भणेइ।। . . बंधु वि मोक्खु वि सयलु जिय जीवहँ कम्मुः जणेइ।
अप्पा किंपि वि कुणइ णवि णिच्छउ एउँ भणेइ।। २. (क) उत्त० ३३ : १-३
(ख) ठाणाङ्ग ८.३.५६६ (ग) प्रज्ञापना २३.१