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पाप पदार्थ : टिप्पणी ११
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११. अशुभ नाम कर्म (गा० ४६-५६) :
नाम कर्म का अर्थ करते हुए कहा गया है-“जो कर्म जीव को गत्यादि पर्यायों को अनुभव करने के लिए बाध्य करे वह नाम कर्म है।"
श्री नेमिचन्द्र लिखते हैं : “जो कर्म जीवों में गति आदि के भेद उत्पन्न करता है, जो देहादि की भिन्नता का कारण है तथा जिससे गत्यंतर जैसे परिणमन होते हैं वह नाम कर्म है।
इस कर्म की तुलना चित्रकार से की गई है। जिस प्रकार चतुर चित्रकार विचित्र वर्गों से शोभन-अशोभन, अच्छे-बुरे, रूपों को करता है उसी प्रकार नाम कर्म इस संसार में जीव के शोभन-अशोभन, इष्ट-अनिष्ट अनेक रूप करता है। जो कर्म विचित्र पर्यायों में परिणमन का हेतु होता है वह नामकर्म है।
नाम कर्म दो प्रकार के होते हैं (१) शुभ और (२) अशुभ । जो शुभ हैं वे पुण्य रूप हैं और जो अशुभ हैं वे पाप रूप।
शुभ नाम कर्म के कुल भेद साधारणतः ३७ माने जाते हैं। और अशुभ नाम कर्म के कुल ३४६।
____ नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ और उनके उपभेद का पुण्य पाप रूप वर्गीकरण निम्न प्रकार है :
१. प्रज्ञापना २३.१.२८८ टीका :
नामयति-गत्यादि पर्यायानुभवनं प्रति प्रवयणति जीवमितिनाम २. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) १२ :
गदिआदि जीवभेदं देहादी पोग्लाण भेदं च।
गदियंतरपरिणमनं करेदि णामं अणेयविं ।। ३. ठाणाङ्ग २-४.१०५ टीका :
विचित्रपर्यायैर्नमयति-परिणमयति यज्जावं तन्नाम, एतत्स्वरूपं चजह चित्तयरो निउणो अणेगरूवाइं कुणइ रूवाइं। सोहणमसोहणाइं चोक्खमचोक्खेहिं वण्णेहिं ।। तह नामंपि हु कम्मं अणेगरूवाई कुणइ जीवस्स।
सोहणमसोहणाइं इठ्ठाणिट्ठाई लोयस्स।। ४. उत्त० ३३.१३ :
नाम कम्मं तु दुविहं सुहमसुहं च आहियं ।
सुहस्स उ बहू भेया एमेव असुहस्सवि।। ५. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : नवतत्त्वप्रकरणम् : ७ भाष्य ३७ :
सत्तत्तीसं नामस्स, पयईओ पुन्नमाह (हु) ता य इमो। ६. वही : ८ भाष्य ४६ :
मोह छवीसा एसा, एसा पुण होइ नाम चउतीसा।