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पाप पदार्थ
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कइयों के शरीर, उपांग, बंधन और संघातन अत्यन्त निकृष्ट होते हैं। अशुभ नामकर्म के उदय से ही ऐसा होता है। इन अमनोज्ञ पुद्गलों का संयोग इसके उदय से है। ५०. स्थावर नामकर्म के उदय से स्थावर - दशक होता है । इसके दस बोल हैं। नामकर्म के उदय से जीव के जैसे नाम होते हैं वैसे ही नाम कर्मों के होते हैं ।
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जिन भगवान ने जिनके आयुष्य को पाप कहा है उनकी गति और आनुपूर्वी भी पाप मालूम देती है। ऐसा मालूम देता है कि गति और आनुपूर्वी आयु के अनुरूप होती है। पर निश्चित रूप से तो जिनेश्वर भगवान ही जानते हैं । चार संहननों में जो बुरे हाड़ हैं उन्हें अशुभ नामकर्म के उदय से जानो । इसी प्रकार चार संस्थानों में जो बुरे आकार हैं वे भी अशुभ नामकर्म के उदय से प्राप्त हैं। अत्यन्त निकृष्ट - अमनोज्ञ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श की प्राप्ति अशुभ नामकर्म के उदय से ही होती है। इस कर्म के संयोग से ही ऐसे दुःखकारी पुद्गल मिलते हैं ।
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स्थावर नामकर्म के उदय से जीव स्थावर होता है। उससे आगे-पीछे हटा नहीं जाता। सूक्ष्म नामकर्म के उदय से जीव सूक्ष्म होता है जिससे उसे सब शरीर सूक्ष्म प्राप्त होते हैं।
साधारण शरीर नामकर्म से जीव साधारण-शरीरी होता है I उसके एक शरीर में अनन्त जीव रहते हैं । अपर्याप्त नामकर्म से जीव अपर्याप्त अवस्था में ही मृत्यु प्राप्त करता है । इसी कारण वह जीव अपर्याप्त कहलाता है।
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अस्थिर नामकर्म के उदय से जीव अस्थिर कहलाता है। इससे उसे बिल्कुल ढीला - अस्थिर शरीर प्राप्त होता है । अशुभ नामकर्म के उदय से जीव अशुभ कहलाता है। इस कर्म के कारण नाभि के नीचे का शरीर भाग बुरा होता है।
अशुभ नामकर्म की प्रकृतियाँ अशुभ गति नामकर्म अशुभ
आनुपूर्वी नामकर्म
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सहनन नामकर्म संस्थान नामकर्म
वर्ण- गन्ध-रस- स्पर्श नामकर्म
शरीर-अङ्गोपाङ्ग
बंधन - संघातन नामकर्म
स्थावर नामकर्म
सूक्ष्म नामकर्म
साधारण शरीर नामकर्म अपर्याप्त नामकर्म
अस्थिर नामकर्म
अशुभ नामकर्म