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पुण्य पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी ११
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सिद्धसेन के अनुसार 'प्रवचन-भक्ति का अर्थ है-आगम-श्रुतज्ञान का विहित-क्रम-पूर्वक श्रवण, श्रद्धान आदि।
(४) गुरु-वत्सलता : धर्म-गुरु का विनय' । 'तत्त्वार्थसूत्र' में इसके स्थान में 'आचार्य-भक्ति है।
(५) स्थविर-वत्सलता : ज्ञानवृद्ध, वयोवृद्ध स्थविर साधुओं का विनय ।
(६) बहुश्रुत-वत्सलता : बहुआगम अभ्यासी साधु का विनय। इसके स्थान में 'तत्त्वार्थसूत्र' में बहुश्रुत-भक्ति है।
(७) तपस्वी-वत्सलता : एक उपवास से आरम्भ कर बड़ी-बड़ी तपस्याओं से युक्त मुनियों की सेवा-भक्ति।
(८) अभिक्ष्णज्ञानोपयोग : अभीक्ष्ण मुहुःमुहुः-प्रतिक्षण | ज्ञान अर्थात् द्वादशांगप्रवचन । उपयोग अर्थात् प्रणिधान-सूत्र,अर्थ और उभय में आत्मव्यापार, आत्मपरिणाम । वाचना, प्रच्छना, अनुप्रेक्षा, धर्मोपदेश का अभ्यास | जीवादि पदार्थ विषयक ज्ञान में सतत जागरूकता।
(६) दर्शन-विशुद्धि : जिनों द्वारा उपदिष्ट तत्त्वों में शंकादि दोषरहित निर्मल रुचि, प्रीति, दृष्टि, दर्शन का होना | तत्त्वों में निर्मल श्रद्धान रूप सम्यग्दर्शन का होना।
(१०) विनय तत्त्वार्थ : विनय संपन्नता। सम्यग्ज्ञानादि रूप मोक्ष मार्ग, उसके साधन आदि में उचित सत्कार आदि विनय से युक्त होना । ज्ञान, दर्शन चारित्र और
१. देखिए पृ० २१४ पा० टि० ४ २. जयाचार्य (भ्रमविध्वंसनम्) पृ० ३८२ ३. वही पृ० ३८२ ४. ' वही पृ० ३८२ ५. सिद्धसेन टीका ६. सर्वार्थसिद्धि : जीवादिपदार्थस्वतत्त्वविषये सम्यग्ज्ञाने नित्यं युक्तता अभीक्ष्णज्ञानोपयोगः ७. (क) सिद्धसेन टीका।
(ख) सर्वार्थसिद्धि : जिनेन भगवतार्हतपरमेष्ठिनोपदिष्टे निर्ग्रन्थलक्षणे मोक्षवम॑नि रुचिर्दर्शनाविशुद्धिः सर्वार्थसिद्धि : सम्यग्ज्ञानादिषु मोक्षमार्गेषु तत्साधनेषु च गुर्वादिषु स्वयोग्यवृत्त्या सत्कार आदरो विनयस्तेन सम्पन्नता विनयसम्पन्नता।