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नव पदार्थ
कहं णं भंते ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जति ? गोयमा ! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं एवं खलु गोयमा ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति।
“भन्ते ! जीव कर्कश वेदनीय कर्म का बंध कैसे करते हैं ?
“गौतम ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य' से। हे गौतम ! जीव इस प्रकार कर्कश वेदनीय कर्म का बंध करते हैं ?
कहं णं भन्ते ! जीवा अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति ? गोयमा ! पाणाइवाय-वेरमणेणं जाव परिग्गहवेरमणेणं कोहविवेगेणं जाव मिच्छादसणसल्लविवेगेणं एवं खलु गोयमा ! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जति। (७.६)
"भन्ते ! जीव अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध कैसे करते हैं ?"
“गौतम ! प्राणातिपात यावत् परिग्रहविरमण से, क्रोध-विवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक से। हे गौतम ! इस तरह जीव अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध करते हैं।
यह पहले बताया जा चुका है कि प्राणातिपात आदि के विरमण से निर्जरा होती है। यहाँ उनके विरमण से अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध बताया गया है, जो शुभ कर्म है। इस प्रकार प्राणातिपात विरमण आदि शुभयोगों से निर्जरा और बंध दोनों का होना प्रमाणित होता है।
१५-अकल्याणकारी-कल्याणकारी कर्मों के बंध-हेतु (गा० १९-२०) :
'भगवतीसूत्र' में कालोदायी का वार्तालाप प्रसंग इस प्रकार है :
अस्थि णं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ? हंता, अत्थि। कहं णं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ? . . . . . . कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले तस्स णं आवाए भद्दए भवइ तओ पच्छा विपरिणममाणे विपरिणममाणे दुरूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ।
१.
प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य तक अठारह पाप इस प्रकार हैं : प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याखान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति-अरति, मायामृषा और मिथ्यादर्शनशल्य ।