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नव पदार्थ
__ . निरवद्य सुपात्र दान से निर्जरा और साथ ही पुण्य-कर्म का बंध होता है, यह इन प्रकरणों से प्रकट है।
१३-साता-असाता वेदनीयकर्म के बंध-हेतु (गा० १६-१७)
यहाँ 'भगवतीसूत्र' के जिस पाठ का उल्लेख है वह इस प्रकार है :
कहं णं भन्ते ! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति ? गोयमा ! पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपिट्टणयाए अपरियावणयाए एवं खलु गोयमा ! जीवाणं सायावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति।
कहं णं भन्ते! जीवाणं असायावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति ? गोयमा ! परदुक्खणयाए परसोयणयाए परजूरणयाए परतिप्पणयाए परपिट्टणयाए परपरियावणयाए बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जाव परियावणयाए एवं खलु गोयमा ! जीवाणं अस्सायावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति (७.६)
गौतम : “भन्ते ! जीव साता वेदनीय कर्म का बंध कैसे करते हैं ?"
महावीर : “गौतम ! प्राणानुकम्पा' से, भूतानुकम्पा से, जीवानुकम्पा से, सत्त्वानुकम्पा से, बहु प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख न करने से, शौक न करने से, अजूरण से, अटिप्पण' से, अपिट्टन से, अपरितापन से । हे गौतम ! इस तरह जीव साता वेदनीय कर्म का बंध करते हैं।
१. अनुकम्पा : जैसे मुझे दुःख अप्रिय है वैसे ही दूसरे प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को
है, इस भावना से किसी को क्लेश उत्पन्न न करना।
'अनुग्रह से दुःख दयार्द्रचित्त वाले का दूसरे की पीड़ा को अपनी ही मानने का भाव।' २. दुःख पीड़ा रूप आत्म परिणाम। ३. शोक : शोचन दैन्य; उपकारी से सम्बन्ध तोड़ कर विकलता उत्पन्न करना। ४. जूरण : शरीरापचयकारी शोक। ५. टिप्पण : ऐसा शोक जिससे अश्रु लालादि का क्षरण होने लगे। ६. पिट्टन : यष्ट्यादि से ताड़न।