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पुण्य पदार्थ ( ढाल : २) : टिप्पणी २६
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प्रश्न नहीं उठता। सबको सब तरह के भोजन और पेय देने से पुण्य कर्म होता है। अन्न पुण्य, पान पुण्य आदि का इस प्रकार अर्थ करना स्वामीजी की दृष्टि से न्याय संगत नहीं । उनके विचार से इस प्रकार का अर्थ करना जिन-प्रवचनों के विपरीत है । अपात्र दान से कभी पुण्य नहीं होता ।
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२९ पुण्य के नौ बोलों की समझ और अपेक्षा ( गा० ४४-५४ ) :
सूत्रों में अनेक बोल बिना अपेक्षा के दिये हुये हैं। उदाहरण स्वरूप - वंदना का बोल (गा० ११ और टिप्पणी ८ ) । सूत्र में मात्र इतना ही उल्लेख है कि वंदना से मनुष्य नीच गोत्र का क्षय करता है और उच्च गोत्र का बंध । किसकी वंदना से ऐसा फल मिलता है, इसका वहाँ उल्लेख नहीं। वैसे ही वैयावृत्त्य के बोल में कहा है कि वैयावृत्त्य से तीर्थंकर गोत्र का बंध होता है। किसकी वैयावृत्त्य से तीर्थंकर गोत्र का बंध होता है इसका भी उल्लेख नहीं । सोच-विचार कर इन बोलों की अपेक्षा - संगति बैठानी पड़ती है। इसी प्रकार इन नौ बोलों के संबंध में भी समझना चाहिए। इन नौ बोलों का वही संगतार्थ होगा जो कि आग का अविरोधी अर्थात् निरवद्य-प्रवृत्ति का द्योतक होगा क्योंकि यह दिखाया जा चुका है कि पुण्य कर्मों की प्रकृतियों के बंध-हेतुओं में एक भी ऐसा कार्य नहीं आता जो सावध हो ।
स्वामीजी का तर्क है कि नौ बोलों में नमस्कार - पुण्य का भी उल्लेख है । किसे नमस्कार करने से पुण्य होता है, इसका वहाँ कोई स्पष्टीकरण नहीं है, परन्तु इससे हर किसी को नमस्कार करना पुण्य का हेतु नहीं होता। 'नमोक्कार सूत्र' में भगवान ने पाँच नमस्य-पद बतलाये हैं; उन्हीं को नमस्कार करने से पुण्य होता है, अन्य लोगों को नमस्कार करने से नहीं ।
इसी प्रकार मन पुण्य, वचन पुण्य और काय पुण्य का उल्लेख है, परन्तु दुष्प्रवृत्त मन, वचन और काय से पुण्य नहीं होगा, उनकी शुभ प्रवृत्ति से ही पुण्य होगा । उसी प्रकार अन्न पुण्य, पान पुण्य का अर्थ भी पात्र-अपात्र, सचित्त-अचित्त और एषणीय-अनेषणीय के भेदाधार पर करना होगा। आगमों के अनुसार निर्ग्रथ साधु को अचित्त, एषणीय अन्न-पान आदि का देना ही पुण्य है। अन्य दान निरवद्य या पुण्य-बंध के हेतु नहीं। स्वामीजी कहते हैं :
(१) यदि अन्न पुण्य, पान पुण्य का अर्थ करते समय पात्र-अपात्र, कल्प्य अकल्प्य और अचित्त-सचित्त के विवेक की आवश्यकता नहीं और सर्व दानों में पुण्य हो तो उस हालत में स्थान, शय्या और वस्त्र पुण्य के सम्बन्ध में भी यही बात लागू होगी। मन पुण्य,