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पुण्य पदार्थ ( ढाल : २) : टिप्पणी २६
वाले श्रमणोपासक आयुष्य पूरा होने पर मरण पाकर, महाऋद्धि वाले तथा महाद्युति वाले देवलोकों में से कोई एक देवलोक में जन्म पाते हैं। इससे प्रकट होता है कि पुण्य का संचय श्रमण-निर्ग्रथों को अन्न आदि देने से ही होता है और अन्न पुण्यादि का अर्थ इसी रूप में करना अभीष्ट है ।
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(४) विचार करने पर मालूम देगा कि पुण्य संचय के जो नौ बोल बताए गये हैं वे वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य कर्मों की शुभ प्रकृतियों के बंध-हेतुओं की संक्षिप्त -रूप हैं। इन बंध-हेतुओं को सामने रखकर ही नौ बोलों का अर्थ करना उचित होगा । वहाँ तथारूप श्रमण-माहन को अशनादि देने से पुण्य कहा है, सर्व दान में नहीं ।
'सुमंगला टीका' में पुण्य-बंध के हेतुओं की व्याख्या करते हुए लिखा है : " सुपात्रों को- तीर्थंकर, गणधर, आचार्य स्थविर और मुनियों को अन्न देना; सुपात्रों को निरवद्य स्थान देना; सुपात्रों को वस्त्र देना; सुपात्रों को निर्दोष प्रासुक जल प्रदान करना; सुपात्रों को संस्तारक प्रदान करना; मानसिक शुभ संकल्प; वाचिक शुभ व्यापार; कायिक शुभ व्यापार और जिनेश्वर, यति प्रभृतियों का वंदन - नमस्कार -पूजन आदि ये नौ पुण्य-बंध के . हेतु हैं ।"
नौ पुण्यों की यह व्याख्या सम्पूर्णतः शुद्ध है और स्वामीजी की व्याख्या से पूर्णरूपेण मिलती है। मूल शब्द 'नमोक्कार पुन्ने' है, जिसमें पुष्पादि से पूजन करने का समावेश
१. सूत्रकृताङ्ग २.२.३६ : ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणंति पाउणित्ता आबाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूई भत्ताइं पच्चक्खायंति बहूई भत्ताइं पच्चक्खाएत्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेन्ति बहूई भत्ताइं अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा - महड्डिएसु महज्जुइएसु जाव महासुक्खेसु
२. श्रीनवतत्त्वप्रकरणम् (सुमङ्गला टीका पृ० ४८ - ४६ ) : सुपात्रेभ्यः तीर्थंकरगणधराऽऽचार्यस्थविरमुनिभ्योऽन्नप्रदानं (१) सुपात्रेभ्यो निरवद्यवसतेर्वितरणम् (२) सुपात्रेभ्यो वाससां प्रदानम् (३) सुपात्रेभ्यो निर्दुष्टप्रासुकजलप्रदानम् (४) सुपात्रेभ्यः संस्तारकस्य प्रदानम् (५) मनसः शुभसंकल्पः (६) वाचः शुभव्यापारः (७) कायस्य शुभव्यापारः (८) जिनेश्वरयतिप्रभृतीनां नमनवंदनपूजनादीनि (६) इत्येतानि नव पुण्यबन्धस्य हेतुत्त्वेनोदाहृतानि तथा चोक्तं श्रीमत् स्थानाङ्गसूत्रे - "णवविधें – पुण्णे अन्नपुन्ने १ पाणपुन्ने २ वत्थपुन्ने ३ लेण-पुन्ने ४ सयणपुन्ने ५ मणपुन्ने ६ वतिपुन्ने ७ कायपुन्ने ८ नमोक्कार पुन्ने ।"