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पुण्य पदार्थ : (ढाल : २)
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१५. विपाक सूत्र में उल्लेख है कि सुबाहु कुमार आदि दस निरवद्य सुपात्र दान
का फल : मनुष्यजनों ने साधुओं को अशनादि देकर मनुष्य-आयुष्य को
आयुष्य बांधा।
साता वेदनीय कर्म के छ: बंध हेतु निरवद्य हैं
१६-१७. भगवती सूत्र के सातवें शतक के छठे उद्देशक में जिन
भगवान ने ऐसा कहा है कि प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व को । दुःख नहीं देने से, शोक उत्पन्न नहीं करने से, झूराने से*, वेदना न करने से, न पीटने से और प्रतापना न देने से इस तरह छ: प्रकार से साता वेदनीय कर्म का बंध होता है और इसके विपरीत आचरण से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है।
१८. भगवती सूत्र के सातवें शतक के छठे उद्देशक में कहा है
कि अठारह पापों के सवेन करने से कर्कश वेदनीय कर्म का बंध होता है और इन पापों के सेवन न करने से अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध होता है |
कर्कश-अकर्कश वेदनीय कर्म के बंध हेतु क्रमशः सावद्य निरवद्य हैं
१६-२०.भगवती सूत्र के सातवें शतक के दसवें उद्देशक में कालोदाई पापों के न सेवन से ने भगवान से प्रश्न किया कि कल्याणकारी कर्मों का कल्याणकारा कम
सेवन से अकल्याणबंध कैसे होता है ? उत्तर में भगवान ने बतलाया कि
कासी कर्म अठारह पाप स्थानकों के सेवन नहीं करने से कल्याणकारी कर्म का बंध होता है और इन्हीं अठारह पाप स्थानकों के सेवन से अकल्याणकारी कर्म का बंध होता है |
सातावेदनीय कर्म के बंध हेतुओं का अन्य उल्लेख
२१-२२.बहु प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व इनके प्रति दया लाकर अनुकम्पा करने से, दुःख उत्पन्न नहीं करने से, शोक
+ उत्पन्न नहीं करने से, न झूराने से, न रुलाने से, न पीटने से और प्रतापना न देने से, इस प्रकार १४ बोलों से साता वेदनीय कर्म का बंध होता है |
दूसरों को दुखीः करना।