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पुण्य पदार्थ : (ढाल : २)
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अशुभ दीर्घायुष्य के हेतु सावद्य हैं
७. इसी तरह स्थानाङ्ग सूत्र में तृतीय स्थानक में कहा है कि
हिंसा करने से, झूठ बोलने से, साधुओं की अवहेलना और निन्दा कर उनको अप्रिय, अमनोज्ञ (अरुचिकर) आहार देने से इन तीनों बातों से अशुभ दीर्घ आयुष्य का बंध
होता है। ८-६. वहीं कहा है कि हिंसा न करने से, मिथ्या न बोलने से और
तथारूप श्रमण निग्रंथ को वन्दन-नमस्कार कर उसको चारों प्रकार के प्रीतिकारी आहार दान देने से शुभ दीर्घ आयुष्य कर्म का बंध होता है । यह पुण्य है।
शुभ दीर्घायुष्य के हेतु निरवद्य हैं
१०. ऐसा ही पाठ भगवती सूत्र के पंचम शतक के षष्ठ उद्देशक
में है। किसी को शंका हो तो देख कर निर्णय कर ले। इसमें जरा भी झूठ नहीं है।
भगवती में भी ऐसा ही पाठ
११. वंदना करता हुआ जीव नीच गोत्र का क्षय करता है और वंदना से पुण्य और .
उसके उच्च गोत्र कर्म का बंध होता है। वंदना करने की निर्जरा दोनों जिन आज्ञा है। उत्तराध्ययन सूत्र का २६ वाँ अध्ययन इसका साक्षी है।
१२. उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन में कहा है कि
धर्म-कथा करते हुए जीव शुभ कर्म का बंध करता है। साथ ही वहाँ धर्म-कथा से निर्जरा होने का भी उल्लेख है।।
धर्म-कथा से पुण्य और निर्जरा दोनों
वैयावृत्य से पुण्य और निर्जरा दोनों
१३. उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन में यह भी कहा है कि
वैयावृत्य करने से तीर्थङ्कर नामकर्म का बंध होता है।
साथ ही वहाँ वैयावृत्य से निर्जरा होने का उल्लेख भी है। १४. ज्ञाता सूत्र के आठवें अध्ययन में यह बात कही गई है कि
जीव २० बातों से कर्मों की कोटि का क्षय करता है और उनसे उसके तीर्थङ्कर नामकर्म का बंध होता है |
जिन बातों से कर्मक्षय होता है उन्हीं से तीर्थंकर गोत्र
का बंध