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अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३२
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पुद्गल द्रव्य है अतः उस पर भी ये सिद्धान्त घटित होते हैं।
स्वामीजी और आचार्य कुन्दकुन्द के कथनों में कितना साम्य है यह स्वयं स्पष्ट है। इस विषय में विज्ञान क्या कहता है, अब यह भी जान लेना आवश्यक है।
एम्पी डोक्लस (४६०-४३० ई० पू०) नामक एक ग्रीक तत्त्ववेत्ता ने, जड़-पदार्थ विषयक एक सिद्धान्त इस तरह रखा था-"Nothing can be made out of nothing, and it is impossible to annihilate anything. All that happens in the world depends on a change of forms and upon the mixture or seperation of bodies.” अर्थात् असत् से सत् की उत्पत्ति नहीं की जा सकती और न यही संभव है कि किसी चीज का सर्वथा नाश ही किया जा सके। दुनिया में जो कुछ भी है वह वस्तुओं के रूप-परिवर्तन पर निर्भर है तथा उनके सम्मिश्रण और पृथक् होने पर आधारित है।
प्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता लेवाइसिये (Laovoisier) ने अनेक प्रयोग कर इसी सिद्धान्त को दूसरे प्रकार से इस तरह रक्खा -“Nothing can be created, and in every porcess there is just as much substance (quantity of matter) present before and after the process has taken place. There is only a change or modification of the matter'." अर्थात् कोई भी चीज नई उत्पन्न नहीं की जा सकती। किसी भी रासायनिक प्रक्रिया के बाद वस्तु (जड़-पदार्थ की मात्रा) उतनी ही रहती है जितनी कि उस प्रक्रिया के आरम्भ होने के समय रहती है। केवल जड़-पदार्थ का रूपान्तर या परिवर्तन होता है।
इस सिद्धान्त को विज्ञान में 'जड़-पदार्थ; की अनश्वरता का नियम' (Law of Indestructibility of matter) या 'जड़-पदार्थ' के स्थायित्व का नियम (Law of Conservation of matter) कहा जाता है।
इस सिद्धान्त के अनुसार वस्तु के वजन-तौल में कमी नहीं आती। मोमबत्ती मे जितना वजन होगा प्रायः उतना ही वजन मोमबत्ती के जल जाने पर उससे प्राप्त वस्तुओं में होगा। जितना वजन जल में होगा उतना ही उनसे प्राप्त ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में होगा।
इसीलिए इस सिद्धान्त को आजकल इन शब्दों में रखा जाता है :
“No change in the total weight of all the substances taking part in achemical change has ever been observed'.”
अर्थात् रसायनिक परिवर्तनों में भाग लेने वाली कुल वस्तुओं का भार परिवर्तन के पश्चात् बनी हुई वस्तुओं के कुत भार के बराबर होता है। उनके भार में कभी कोई परिवर्तन नहीं देखा गया।
4. General and Inorganic chemistry by P.J. Dirrant M. A., ph. D.p. 5