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पुण्य पदार्थ (ढाल : १)
३५. तीर्थंकर चक्रवती, वासुदेव, बलदेव तथा माण्डलिक राज आदि की महान् पदवियाँ सब पुण्य के ही कारण मिलती हैं।
३६. देवेन्द्र, नरेन्द्र और अहमिन्द्र आदि की बड़ी-बड़ी पदवियाँ सब पुण्य के प्रताप से मिलती है।
३७. पुद्गलों का शुभ परिणमन पुण्योदय से ही प्राप्त होता है। पुद्गलों के शुभ परिणमन से संसार में सुख की प्राप्ति होती है। इस तरह सारे सुख पुण्य के ही फल है, यह समझो ।
३८. पुण्य के ही प्रताप से बिछुड़े हुए प्रियजनों का मिलाप होता है, सज्जनों का संग मिलता है। और यह भी पुण्य का ही कारण हैं कि शरीर में रोग नहीं व्यापता ।
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पुण्य के ही प्रताप से हाथी, रथ और पैदलों की चतुरंगिनी सेना प्राप्त होती है और सब तरह की ऋद्धि, वृद्धि और सुख-सम्पत्ति भी उसी के परिणाम से मिलती है 1
क्षेत्र (खुली भूमि), वस्तु (घर आदि), हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद और कुम्भी धातु ये (नौ प्रकार के परिग्रह) पुण्य के प्रताप से ही मिलते हैं ।
पुण्य से ही हीरे, पन्ने, माणिक, मोती, मूंगे तथा नाना तरह के रत्न प्राप्त होते हैं। बिना पुण्य के इनमें से एक की भी प्राप्ति नहीं होती ।
पुण्य से ही प्रिय, विनयी और अप्सरा के सदृश रूपवती स्त्री मिलती है और अनेक उत्तम पुत्र प्राप्त होते हैं।
पुण्य के प्रसाद से ही देवताओं के अनिर्वचनीय सुख मिलते हैं और जीव पल्यसागरोपम तक उन्हें भोगता है।
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पुण्योदय के फल ( गा० ३५-४५)