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नव पदार्थ
५२. पुन तणी वंछा कीयां, लागे छै एकंत पाप हो लाल ।
तिणसुं दुःख पामें संसार में, वधतो जाये सोग संताप हो लाल।।
५३. जिणसुं पुन तणी वंछा करी, तिण वांछिया काम नें भोग हो लाल।
त्यांने दुःख होसी नरक निगोद नां, वले वाला रा पड़सी विजोग हो लाल।।
५४. पुन तणा सुख असासता, ते पिण करणी विण नहीं थाय हो लाल।
निरवद करणी करे तेहनें, पुन तो सेहजां लागे छै आय हो लाल ।।
५५. पुन री वंछा सुं पुन न नीपजे, पुन तो सहजे लागे छै आय हो लाल।
ते तो लागे छै निरवद जोग सूं. निरजरा री करणी सूं ताय हो लाल।।
५६. भली लेश्या ने भला परिणाम थी, निश्चेंइ निरजरा थाय हो लाल।
जब पुन लागे छै जीव रे, सहजे सभावे ताय हो लाल।।
५७. जे करणी करै निरजरा तणी, पुन तणी मन में धार हो लाल।
ते तो करणी खोए नें बापड़ा, गया जमारो हार हो लाल ।।
५८. पुन तो चोफरसी कर्म छै, तिणरी वंछा करे ते मूढ़ हो लाल।
त्यां कर्म में धर्म न ओलख्यो, करे करे मिथ्यात नी रूढ हो लाल ।।
५६. जे जे पुन थी वस्त मिले तके, त्यांने त्याग्यां निरजरा थाय हो लाल।
जो पुन भोगवे निधी थको, तो चीकणा कर्म बंधाय हो लाल।।
६०. जोड़ कीधी पुन ओलखयवा, श्रीजी दुवारा सहर मझार हो लाल।
संवत अठारे पचावनें, जेठ विद नवमी सोमवार हो लाल।।