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करने वाले और संसार को करने वाले होते हैं। इन पाँच को अच्छी तरह जाना हो, उनका त्याग किया हो तो वे जीव के लिए हित के कर्त्ता, शुभ के कर्त्ता, सामर्थ्य को उत्पन्न करने वाले, निःश्रेयस को करने वाले और सिद्धि को देने वाले होते हैं ।
"इन पाँचों को त्याग करने से जीव सुगति में जाता है और त्याग न करने से दुर्गति में जाता है ।"
नव पदार्थ
स्वामीजी का कथन इस आगम-वाक्य से पूर्णतः समर्थित है ।
पुण्य से नाना प्रकार के ऐश्वर्य और सुख की वस्तुएँ और प्रसाधन मिलते हैं। जो इनका त्याग करता है उसके कर्मों का क्षय होता है, और साथ ही सहज भाव से पुण्य का बंधन होता है पर जो प्राप्त भोगों और सुखों का गृद्धि भाव से सेवन करता है उसके स्निग्ध कर्मों का बंधन होता है जिन्हें दूर करना महा कठिन कार्य होता है ।
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है : "जो भोगासक्त होता है वह कर्म से लिप्त होता है। अभोगी लिप्त नहीं होता । भोगी संसार में भ्रमण करता है, अभोगी - त्यागी जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है ।" "गीले और सूखे मिट्टी के दो गोले फेंके जाय तो गीला दीवार से चिपक जाता है, सूखा नहीं चिपकता । वैसे ही कामलालसा में मूच्छित दुर्बुद्धि के कर्म चिपक जाते हैं। जो कामभोगों से विरक्त होते हैं उनके कर्म नहीं चिपकते । *
१. ठाणांग : ५.१.३६० : पंच कामगुणा षं० तं०- सद्दा रूवा गंधा रसा फासा ३, पंचहि ठाणेहिं जीवा सज्जंति तं० सद्देहिं जाव फासेहिं ४, एवं रज्जंति ५ मुच्छंति ६, गिज्झति ७, अज्झोववज्जंति ८, पंचहि ठाणेहिं जीवा विणिघायमावज्जंति, तं० - सद्देहिं जाव फासेहिं ६ पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं अहिताते असुभाते अखमाते अणिस्सेताते अणाणुगामित्ता भवंति, तं०–सद्दा जाव फासा १०, पंच ठाणा सुपरिन्नाता जीवाणं हिताते सुभाते जाव आगामियत्ता भवंति सं०- सद्दा जाव फासा ११, पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं दुग्गतिगमणाए भंवति तं० - सद्दा जाव फासा १२, पंच ठाणा परिण्णाया जीवाणं सुग्गतिगमणाए भवति तं०- ० - सद्दा जाव फासा १३
उत्तद्ध २५ ४१-४३
२.
उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई || उल्लो सुक्खो य दो छूढा गोलया मिट्टियामया । दो वि आवडिया कुड्डे जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई ।। एवं लग्गन्ति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति जहा से सुक्खगोलएं ।।