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अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३२
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डाल्टन के अणुवाद से 'जड़-पदार्थ के स्थायित्व के नियम' का स्पष्टीकरण इस प्रकार होता है :
डाल्टन के अनुसार प्रत्येक वस्तु अणुओं से बनी हुई है। ये अणु नित्य, अनुत्पन्न और अविनाशी हैं। इसलिए रसायनिक क्रिया से पूर्व अणुओं की संख्या व क्रिया के अन्त में अणुओं की संख्या निश्चित रहती है और चूंकि प्रत्येक अणु का भार निश्चित है अतः रासायनिक क्रिया के पूर्व व पश्चात् कुल वस्तुओं का भार वही रहेगा। अतः जड़-पदार्थ न उत्पन्न किया जा सकता है और न नष्ट ही हो सकता है।
डाल्टन ने जो अणुवाद का सिद्धान्त दिया हे वह जैन परमाणुवाद से सम्पूर्णतः मिलता है।
डाल्टन के अणुवाद के आधार से जैसे विज्ञान का 'जड़-पदार्थ के स्थायित्व का नियम' सिद्ध होता है वैसे ही परमाणुवाद के अनुसार जैन पदार्थवाद के द्रव्य-पुद्गल के स्थायित्व का नियम सिद्ध होता है।
जैन पदार्थवाद के अनुसार परमाणु ही द्रव्य-पुद्गल है। वे नाशशील नहीं पर उनसे उत्पन्न वस्तुएँ नाशशील हैं। द्रव्य-पुद्गला के संयोग से नये पदार्थ बन सकते हैं और उनके बिछुड़ने से विद्यमान वस्तुओं का नाश हो सकता है। उत्पत्ति और विनाश ध्रुव द्रव्य-पुद्गल के स्वाभाविक अंग हैं।
इधर के वैज्ञानिक अन्वेषण भी इसी बात को सिद्ध करते हैं।
आधुनिक रेडियम (Radium) धर्मी तथा अणु सम्बन्धी अनुसन्धानों से ज्ञात हुआ है कि जड़-पदार्थ (matter) शक्ति (energy) में परिवर्तित हो सकता है और शक्ति जड़-पदार्थ में।
जड़-पदार्थ में शक्ति गर्मी, प्रकाश आदि के रूप में बाहर निकलती है। इस तरह जड़-पदार्थ अब अविनाशशील नहीं माना जाता। शक्ति के रूप में परिवर्तित होने पर पदार्थ के भार में कमी आती है। भार की कमी अत्यन्त अल्प होती है और सूक्ष्म साधनों से भी सरलता से नहीं पकड़ी जाती फिर वस्तुतः कमी होती है, ऐसा वैज्ञानिक
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The weight of a chemical system is the sum of the weights of all the atoms in it. Chemical change consists of nothing else than the combination or seperatin of
these atoms. However the atoms may change their grouping, the sum of their weights, and hence the weight of the system, remains constant. (General and Inorganic Chemistry by P. J. Durrant p.