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अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३४
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अतिरिक्त टिप्पणियां
३४. षट् द्रव्य समास में
प्रथम दो ढालों में षट् द्रव्यों का वर्णन विस्तारपूर्वक आया है। ठाणाङ्ग तथा. भगवती २ सूत्र में उनका वर्णन चुम्बक रूप में उपल्ब्ध है। उसमें समूचे विवेचन का सार आ जाता है अतः उसे यहाँ देना पाठकों के लिए बड़ा लाभदायक है :
“संक्षेप में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल प्रत्येक के द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव, और गुण से पाँच-पाँच प्रकार
"द्रव्य से अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है; क्षेत्र से लोकप्रमाण मात्र है; काल से कभी नहीं था ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं, नहीं होगा ऐसा नहीं, वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अव्यय, अवस्थित और नित्य है; भाव से अवर्ण, अंगध, अरस, अस्पर्श-अरूपी अजीव द्रव्य है तथा गुण से गमनगुण वाला है।
'द्रव्य से अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है; क्षेत्र से लोकप्रमाण मात्र है; काल से कभी नहीं था ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं, नहीं होगा ऐसा नहीं, ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अव्यय, अवस्थित और नित्य है; भाव से अवर्ण, अगंध, अरस, अस्पर्श-अरूपी अजीव द्रव्य है तथा गुण से स्थितिगुण वाला है।'
"आकाशास्त्किाय द्रव्य से एक द्रव्य है; क्षेत्र से लोकालोकप्रमाण मात्र अनन्त है; काल से कभी नहीं ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं, नहीं होगा ऐसा नहीं, ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अव्यय अवस्थित और नित्य है; भाव से अवर्ण, अगंध, अरस, अस्पर्श-अरूपी अजीव द्रव्य है तथा गुण से अवगाहनागुण वाला है।
“जीवास्तिकाय द्रव्य से अनंत द्रव्य है; क्षेत्र से लोकप्रमाण मात्र हैं; काल से कभी नहीं था ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं, नहीं होगा ऐसा नहीं, ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत,
१. यहाँ से जो टिप्पणियाँ हैं, उनका सम्बन्ध मूल कृति के साथ नहीं है पर विषय को .
स्पष्ट करने के लिए वे दी गयी हैं। २. (क) ठाणाङ्ग ५.३.४४१
(ख) भगवती २.१०