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पुण्य पदार्थ (डाल : १)
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आठ कर्मों में पुण्य
कितने?
२. आठ कर्मों में चार केवल पाप स्वरूप हैं और चार कर्म
पुण्य और पाप दो प्रकार के हैं। पुण्य कर्म से जीव को सुख होता है, कभी दुःख नहीं होता।
पुण्य की अनन्त
पर्यायें
३. पुण्य के अनन्त प्रदेश हैं। वे जब जीव के उदय में आते
हैं। तो उसको अनन्त सुख करते हैं। इसीलिए पुण्य की
अनन्त पर्यायें होती है। ४. जब जीव के निरवद्य योग का प्रवर्तन होता है तो उसके ।
शुभ पुद्गलों का बंध होता है। इन कर्म-पुदगलों के गुणानुसार अलग-अलग नाम हैं।
पुण्य का बंधः निरवद्य योग से
साता वेदनीय कर्म
५. जो कर्म-पुद्गल साता वेदनीय रूप में परिणमन करते हैं
और सात रूप में उदय में आते है वे जीव को सुख कारक होते हैं, इससे उनका नाम ‘साता वेदनीय कर्म' रखा गया
६.
शुभ आयुष्य कर्मः उसके तीन भेद
जब पुद्गल शुभ आयु में परिणमन करते हैं तो जीव अपने शरीर में दीर्घ काल तक जीवित रहने की इच्छा करता है
और सोचता है कि मैं जीता रहूँ और मरूँ नही; ऐसे कर्म-पुद्गलों का नाम 'शुभ आयुष्य कर्म' है।
१. देवायुष्य २. मनुष्यायुष्य ३. तिर्यञ्चायुष्य
७. कई देवता और कई मनुष्यों के शुभ आयुष्य होता है जो
पुण्य की प्रकृति है। युगलियों और तिर्यञ्चों का आयुष्य भी पुण्य रूप मालूम देता है। जो कर्म शुभ नाम रूप से परिगमन करते हैं तथा विपाक अवस्था में शुभ नाम रूप से उदय में आते हैं उनसे अनेक बातें शुद्ध होती है इसीलिए जिन भगवान ने इसको
'शुभ नाम कर्म' कहा है। ६. शुभ आयुष्यवान मनुष्य और देवताओं की गति और आनुपूर्वी
शुद्ध होती है। कई पंचेन्द्रिय जीव विशुद्ध होते हैं। उनकी जाति भी विशुद्ध होती है।
शुभ नाम कर्म : उसके ३७ भेद(गा० ८.२६)
१. मनुष्य गति २. मनुष्य आनुपूर्वी
३. देव गति ४. देव गति ५. पंचेन्द्रिय जाति