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अजीव पदार्थ : टिप्पणी २५
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परमाणु के बिछुड़ने पर स्कंध सूखने लगता है। इसलिए वह स्कंध के खण्ड का कारण है। परमाणुओं के मिलाप से स्कंध बनता है या पुष्ट होने लगता है इसलिए स्कंध का कर्ता है।
अपने वर्णादि गुणों को स्थान देता है अतः सावकाश है। एक प्रदेश से अधिक स्थान . को नहीं लेता अतः अनवकाश है अथवा उसके एक प्रदेश में दूसरे प्रदेश का समावेश नहीं होता अतः वह अनवकाश है।
पुद्गल सूक्ष्मतम स्वतंत्र द्रव्य होने से धर्म, अधर्म, आकाश और जीव जैसे अखण्ड और अमूर्त द्रव्यों में प्रदेशांशों की कल्पना की जाती है उसका आधार है। परमाणु जितने आकाश स्थान को ग्रहण करता है उतने को एक प्रदेश मान कर ही उनके असंख्यात या अनन्त प्रदेश बतलाये गये हैं। कुन्दकुन्दाचार्य कहते हैं-"पुद्गल को आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाने में जो अन्तर लगता है वह ही समय है। इस तरह उनके अनुसार काल के माप का आधार भी परमाणु है।
२५. पुद्गलं का उत्कृष्ट और जघन्य स्कंध (गा० ४९-५०) :
धर्म, अधर्म और जीव द्रव्य के प्रदेश असंख्यात हैं और आकाश द्रव्य के प्रदेश अनन्त हैं। पुद्गल द्रव्य के स्कन्ध भिन्न-भिन्न प्रदेशों की संख्या को लिए हुए हो सकते हैं। कोई पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशों का, कोई असंख्यात प्रदेशों का और कोई अनन्त प्रदेशों का हो सकता है।
पुद्गल का सब-से-बड़ा स्कन्ध अनन्त प्रदेशी होता है फिर भी उसके लिये अनन्त आकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती। वह केवल लोकाकाश के क्षेत्र प्रमाण ही होता हैं। उसी तरह पुद्गल का छोटा-से-छोटा स्कन्ध द्विप्रदेशी हो सकता है परन्तु वह प्रमाण में अंगुल के असंख्यातवें भाग अर्थात् एक प्रदेश आकाश से छोटा नहीं हो सकता। अनन्त
१. (क) स्कन्दन्ते शुष्यन्ति पुद्गलविचटनेन, धीयन्ते-पुष्यन्ति पुद्गल-चटनेनेति स्कंधाः
(ख) उत्त० ३६.११ एगत्तेण पुहुत्तेण, खंधा य परमाणु य २. (क) प्रवचनसार २.४५
(ख) देखिए पृ० ८२ पाद-टि० ३ ३. प्रवचनसार २.४७ ४. तत्त्वार्थसूत्र ५.७-११