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अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३१
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उदाहराण स्वरूप हमारी काठ की टेबुल, लोहे की कुर्सी, पीतल का पेपरवेट, दफ्तर की फाइलें, प्लास्टिक की कैंची, हमारा निजी शरीर, हमारी निज की इन्द्रियाँ ये सभी भाव-पुद्गल हैं।
मूल-पुद्गल नित्य होते हैं। वे शाश्वत हैं। भाव-पुद्गल अनित्य होते हैं और नाशवान हैं।
उदाहरण स्वरूप एक मोमबत्ती को ले लीजिये। जलाये जाने पर कुछ ही समय में उसका सम्पूर्ण नाश हो जायेगा। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया जा सकता है कि मोमबत्ती के नाश होने से अन्य वस्तुओं की उत्पत्ति हुई है।
इसी तरह जल को एक प्याले में रखा जाय और प्याले में दो छिद्रकर तथा उनमें कार्क लगाकर दो प्लेटिनम की पत्तियाँ जल में खड़ी कर दी जायें और प्रत्येक पत्ती के ऊपर एक काँच का ट्यूब लगा दिया जाय और प्लेटिनम की पत्तियों का सम्बन्ध तार द्वारा बिजली की बैटरी के साथ कर दिया जाय तो कुछ ही समय में पानी गायब हो जायेगा। साथ ही यदि उन प्लेटिनम की पत्तियों पर रख गये ट्यूबों पर ध्यान दिया जायेगा तो दोनों में एक-एक तरह की गैस मिलेगी जो ऑक्सीजन और हाइड्रोजन होगी।
फेरस सलफेट और सिल्वर सलफेट के घोलों को एक साथ मिलाने से उनसे सिल्वर धातु की उत्पत्ति होती है। इस तरह पुद्गलों के विच्छेद और परस्पर मिलने से भाँति-भाँति की पौद्गलिक वस्तुओं की निष्पत्ति होती है।
___ द्रव्य-पुद्गल स्वाभाविक होते हैं और भाव पुद्गल कृत्रिम । भाव-पुद्गल द्रव्य-पुद्गलों से रचित होते हैं, उनकी पर्यायें होती हैं और द्रव्य-पुद्गल स्वाभाविक अनुत्पन्न पदार्थ हैं। ऐसी कोई दो वस्तुएँ नहीं हैं कि जिनसे द्रव्य-पुद्गल उत्पन्न किए जा सकें। जो संयोग से बनी हुई चीजें हैं वे नित्य नहीं हो सकती और जो असंयोगज वस्तुएँ हैं उनका कभी विनाश नहीं हो सकता, वे नित्य रहती हैं।
३१. (गा० ५५-५८) :
स्वामीजी ने इन गाथाओं में भाव-पुद्गलों के कुछ उदाहरण दिये हैं; यथा-आठ कर्म, पाँच शरीर आदि। नीचे इन भाव-पुद्गलों पर कुछ प्रकाश डाला जाता है : १. A Text-Book of Inorganic Chemistry By J.R. Partington, M.B.E., D.Sc.P.15
Expt. 7 2. A Text-Book of Inorganic Chemistry by G.S. Newth, F.LC., F.C.S. p. 237