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रहती है पर समयों के समुदाय की संभावना भविष्य में भी नहीं है । अतः अतीत में काल-स्कंध का अभाव था, वर्तमान में केवल एक ही समय होने से उसका अभाव है और आगे के अनुत्पन्न समय भी परस्पर मिलेंगे नहीं । अतः भविष्यत् में भी उसका अभाव रहेगा' ।
स्कंध से अविभक्त कुछ न्यून भाग को देश कहते हैं। जब काल के स्कंध ही नहीं तब देश कैसे होगा ? स्कंध से अविच्छिन्न सूक्ष्मतम भाग मात्र को प्रदेश कहते हैं । स्कंध नहीं, देश नहीं, तब प्रदेश की संभावना भी नहीं । परमाणु प्रदेश-तुल्य विच्छिन्न भाग होता है। स्कंध ही नहीं तब उससे प्रदेश के जुदा होने का प्रश्न ही नहीं उठता। वैसी हालत में काल द्रव्य का चौथा भेद परमाणु भी नहीं होता है। जीव अस्तिकाय द्रव्य है । अजीव द्रव्य है धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल भी अस्तिकाय है । इस तरह छह द्रव्यों में पांच अस्ति-काय हैं । काल अस्तिकाय नहीं है। काल तीनों काल में होता है अतः अस्ति गुण तो उसमें घटता है पर 'काय' गुण नहीं घटता कारण बहु-प्रदेशी होना तो दूर रहा वह एक प्रदेशी भी नहीं है ।
इस सम्बन्ध में दिगम्बर आचार्यों का मन्तव्य इस प्रकार है : "काल को छोड़ पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं । काल द्रव्य के एक प्रदेश होता है इसलिए यह कायावान् नहीं है ।" कुन्दकुन्दाचार्य ने भी यही कहा है- "कालस्स दु णत्थि कायत्तं" काल के कायत्व नहीं
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५.
(क) नवतत्त्व प्रकरण (देवगुप्तसूरि) ३४ :
नव पदार्थ
अद्धासमओ एगो जमतीताणागया अणंतावि ।
नासाणुप्पत्तीओ न संति संतोऽथ पडुपन्नो ।।
(ख) चिरन्तनाचार्य रचित अवचूर्णि (नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : ६ पृ० ६)
तथैव अद्धा च कालः स च कालः एकविध एव वर्तमानसमयलक्षणोऽतीता
नागतयोर्विनष्टानुत्पन्नत्वेनाऽसत्त्वात्
ठाणाङ्ग ४.१.२५२
(क) ठाणाङ्ग ५.३.४४१
(ख) पंचास्तिकायः १.२२
(क) सप्ततत्त्वप्रकरणम् (हेमचन्द्र सूरि )
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काल विणा पएसबाहुल्लणं अत्थिकाया
तत्र कालं विना सर्वे प्रदेशाप्रचयात्मकाः । । ४२ ।।
(ख) सप्ततत्त्वप्रकरणम् (देवनन्द सूरि ) :
द्रव्यसंग्रह : २३.२५ कालस्सगो ण तेण सो काओ