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अजीव पदार्थ : टिप्पणी २४
हैं। उनसे उनका कोई अंश विलग नहीं किया जा सकता। वे अवयवी नहीं प्रदेश-प्रचय रूप हैं। पुद्गल के अवयवी होने से ही उसके टुकड़े, विभाग उससे जुदे हो सकते हैं। पुद्गल का ऐसा पृथक् सूक्ष्मतम अंश परमाणु कहलाता है। पुद्गल के चार भेदों की गणना से रूपी-अरूपी अजीव पदार्थ के १४ भेद होते हैं :
धम्माधम्मागासा, तियतिय भेया तहेव अद्धा य।
खंधा देसपएसा, परमाणु अजीव चउदसहा' ।। . पुद्गल के चार भेदों की व्याख्या संक्षेप में इस प्रकार की जा सकती है : समग्र पुद्गलकाय को स्कंध कहते हैं। दो प्रदेश से लगाकर एक कम अनन्त प्रदेश तक के उसके अविभक्त अंशों को देश कहते हैं। सूक्ष्मतम अविभक्त अविभाज्य अंश को प्रदेश कहते हैं। प्रदेश जितने विभक्त अविभाज्य अंश को परमाणु कहते हैं।
कुन्दकुन्दाचार्य ने पुद्गल के भेदों को स्वरूप बताते हुए कहा है : “सकल समस्त पुद्गलकाय को स्कंध कहते हैं। उस पुद्गल स्कंध के अर्द्ध भाग को देश और उसके अर्द्ध भाग को प्रदेश कहते हैं। परमाणु अविभागी होता है। स्कंध-देश और स्कंध-प्रदेश की जो परिभाषा यहाँ दी गयी है वह श्वेताम्बराचार्यों से भिन्न है। स्कंध के अर्द्धभाग को ही क्यों दो प्रदेश से लेकर एक कम अनन्त प्रदेश तक के अपृथक् विभागों को स्कंध-देश कहते हैं। प्रदेश भी स्कंध के आधे का आधा अर्थात् चौथाई अंश नहीं पर सूक्ष्मतम अविभक्त अविभागी अंश है। इसी कारण कहा है : “द्विप्रदेश आदि से अनन्त प्रदेशी तक के पुद्गल स्कंध हैं। उनके सविभाग भागों को देश जानो। और निर्विभाग भाग रूप जो पुद्गल हैं उन्हें प्रदेश, तथा जो स्कंध-परिणाम से रहित है-उससे असम्बद्ध है-उसे परमाणु कहा जाता है।"
१. नवतत्त्वप्रकरण (देवगुप्त सूरि) : ६ २. पञ्चास्तिकाय : १.७५ :
खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्ध भणंति देसोत्ति।
अद्धद्धं च पदेशो परमाणू चेव अविभागी।। ३. नवतत्त्वप्रकरण (देवगुप्त सूरि) गाथा ६ का भाष्य (अभय०) :
दुपदेसाइअणंतप्पएसियंता उ पोगल्ला खंधा। तेसिं चिय सविभागा, भागा देसत्ति नायव्वा ।।३५ ।। ते चेव निविभागा, होति पएसत्ति पुग्गुला जे उ। खंधपरिणामरहिया, ते परमाणुत्ति निद्दिट्ठा ।।३६ ।।