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श्रीआदिनाथ-चरित
शरीर प्रमाणमें साढ़े पाँच सौ धनुष था । प्रसेनजितके बाद मरुदेव छठा कुलकर नियत हुआ। वह तीनों प्रकारके दंडविधानसे काम लेता रहा। __ श्रीकान्ताने नाभि और मरुदेवा नामका एक जोड़ा प्रसवा । उसकी आयु अपने मातापितासे कुछ कम और शरीर सवा पाँच सौ धनुष था। मरुदेवके बाद नाभि सातवें कुलकर नियत हुए। वे भी अपने पिताकी भाँति तीनों-'हाकार' 'माकार' और ‘धिक्कार ' दंडविधानसे काम लेते रहे।
जन्म और बचपन। तीसरे आरेके जब चौरासी लाख पूर्व और नवासी पक्ष (तीन बरस साढ़े आठ महीने ) बाकी रहे तब आषाढ़ कृष्णा चतुर्दशीके दिन उत्तराषाढा नक्षत्र और चंद्रयोगमें 'धनसेठ' ( वज्रनाभ ) का जीव तेतीस सागरका आयु पूरा कर सर्वार्थसिद्धिसे च्यवा और जैसे मान सरोवरसे गंगाके तटपर हंस आता है उसी भाँति मरुदेवाके गर्भ में आया। उस समय प्राणी मात्रके दुःख कुछ क्षणके लिए हल्के हुए। ___ माता मरुदेवाको चौदह महा स्वप्न आये । इन्द्रोंके आसन काँपे । उन्होंने अवधिज्ञानसे प्रथम तीर्थकरका गर्भ में आना देखा । वे सब इकडे होकर माता मरुदेवाके पास आये। उन्होंने स्वमोंका* फल सुनाया । फिर वे मरुदेवाको प्रणाम कर अपने स्थानपर चले गये।
* देखो तीर्थकरचरित-भूमिका पृष्ठ १०-१४ तक ।
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