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जैन - रत्न
दूसरा कुलकर था । जोड़ेका शरीर आठ सौ धनुपका और आयु असंख्य पूर्वकी थी ।
इनके जो जोड़ा उत्पन्न हुआ उसका नाम यशस्वी और सुरूपा थे । आयु दूसरे कुलकरके जोड़ेसे कुछ कम और शरीर साढ़े सात सौ धनुषका था । पिताकी मृत्युके बाद यशस्वी तीसरा कुलकर नियत हुआ । उसके समयमें ' हाकार ' दंडविधान से कार्य न चला। तब उसने ' माकार का दंडविधान और किया । अल्प अपराधवालेको ' हाकार ' का विशेष अपराधवालेको 'माकार'का और गुरुतर अपराध वालेको दोनोंका दंड देने लगा ।
सुरूपाकी कूख से अभिचन्द्र और प्रतिरूपाका जोड़ा उत्पन्न हुआ | वह अपने मातापिता से कुछ अल्प आयुवाला और साढ़े सौ धनुष शरीरवाला था | यशस्वी के बाद अभिचन्द्र चौथा कुलकर नियत हुआ । वह अपने पिताकी 'हाकार' और 'माकार' दोनों नीतियों से काम लेता रहा ।
छः
प्रतिरूपाने एक जोड़ा उत्पन्न किया । उसका नाम प्रसेनजित और चक्षुकान्ता हुआ। उनके मातापितासे उनकी आयु कुछ कम थी । शरीर छः सौ धनुष प्रमाण था । प्रसेनजित अपने पिता के बाद पाँचवाँ कुलकर नियत हुआ । इसके सम
में ' हाकार' और 'माकार' नीतिसे काम नहीं चला तब उसने ' धिक्कार ' का तीसरा दंडविधान और बढ़ाया ।
चक्षुकान्ताके गर्भ से मरुदेव और श्रीकान्ता नामका जोड़ा उत्पन्न हुआ | वह अपने मातापितासे आयुमें कुछ कम और
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