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________________ ५४ जैन - रत्न दूसरा कुलकर था । जोड़ेका शरीर आठ सौ धनुपका और आयु असंख्य पूर्वकी थी । इनके जो जोड़ा उत्पन्न हुआ उसका नाम यशस्वी और सुरूपा थे । आयु दूसरे कुलकरके जोड़ेसे कुछ कम और शरीर साढ़े सात सौ धनुषका था । पिताकी मृत्युके बाद यशस्वी तीसरा कुलकर नियत हुआ । उसके समयमें ' हाकार ' दंडविधान से कार्य न चला। तब उसने ' माकार का दंडविधान और किया । अल्प अपराधवालेको ' हाकार ' का विशेष अपराधवालेको 'माकार'का और गुरुतर अपराध वालेको दोनोंका दंड देने लगा । सुरूपाकी कूख से अभिचन्द्र और प्रतिरूपाका जोड़ा उत्पन्न हुआ | वह अपने मातापिता से कुछ अल्प आयुवाला और साढ़े सौ धनुष शरीरवाला था | यशस्वी के बाद अभिचन्द्र चौथा कुलकर नियत हुआ । वह अपने पिताकी 'हाकार' और 'माकार' दोनों नीतियों से काम लेता रहा । छः प्रतिरूपाने एक जोड़ा उत्पन्न किया । उसका नाम प्रसेनजित और चक्षुकान्ता हुआ। उनके मातापितासे उनकी आयु कुछ कम थी । शरीर छः सौ धनुष प्रमाण था । प्रसेनजित अपने पिता के बाद पाँचवाँ कुलकर नियत हुआ । इसके सम में ' हाकार' और 'माकार' नीतिसे काम नहीं चला तब उसने ' धिक्कार ' का तीसरा दंडविधान और बढ़ाया । चक्षुकान्ताके गर्भ से मरुदेव और श्रीकान्ता नामका जोड़ा उत्पन्न हुआ | वह अपने मातापितासे आयुमें कुछ कम और 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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