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________________ श्रीआदिनाथ-चरित इनके पूर्व भवमें एक मित्र था । वह कपट करनेसे मरकर उसी स्थान पर चार दाँतवाला हाथी हुआ । एक दिन उसने फिरते हुए सागरचन्द्र और प्रियदर्शनाको देखा । उसके हृदयमें पूर्व स्नेहके कारण प्रेमका संचार हुआ। उसने दोनोंको आहिस्तगीके साथ सूंडसे उठाकर अपनी पीठपर बिठा लिया। अन्यान्य युगलियोंने, सागरचन्द्रको इस हालतमें देखकर आश्चर्य किया। उसको विशेष शक्तिसम्पन्न समझा और अपना न्यायकर्ता बना लिया । वह विमल-श्वेत, वाहन-सवारी पर बैठा हुआ था, इसलिए लोगोंने उसका नाम 'विमलवाहन' रक्खा । क्योंकि कल्पवृक्ष उस समय बहत ही थोडा देने लगे थे. इसलिए युगलियोंके आपचमें झगड़े होने लग गये थे । इन झगड़ोंको मिटाना ही विमलवाहनका सबसे प्रथम काम था। उसने सोच-विचारकर सबको आपसमें कल्पवृक्ष बाँट दिये। और 'हाकार ' का दंड विधान किया । जो कोई दूसरेके कल्पक्षपर हाथ डालता था, वह विमलवाहनके सामने लाया जाता था। विमलवाहन उसे कहता:-"हा! तूने यह किया" इस कथनको वह मौतसे भी ज्यादा दंड समझता था और फिर कभी अपराध नहीं करता था। प्रथम कुलकर विमलवाहनके युगल संतान उत्पन्न हुई । पुरुषका नाम चक्षुष्मान था और स्त्रीका चन्द्रकान्ता । विमलवाहन के बाद चक्षुष्मान कुलकर हुआ। वह भी अपने पितादीकी भाँति 'हाकार' दंड विधानसे काम लेता था। यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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