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विकृतिविज्ञान
परन्तु सितकोशाओं का निरोधन करने का गुण होने से इस रोग का औतकीय चित्र बदला हुआ देखा जाता है । यही बात आन्त्रिक ज्वर तथा ( सम्भवतः ) फिरङ्ग के लिए भी ठीक उतरती है।
विषाणु (virus) जन्य रोगों में पूयन का पूर्णतः अभाव रहता है क्योंकि विषाणुओं पर पुरुन्यष्टि कोशाओं का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। इसी कारण विषाणुजन्य तीव्रतम व्रणशोथावस्था में भी प्रयोत्पत्ति देखी नहीं जाती है । इन अवस्थाओं में लसीकोशा तथा एकन्यष्टिकोशाओं की वृद्धि होती है जो औतिकीय चित्रों द्वारा स्पष्ट देखी जा सकती है । प्रतिश्याय, कनफेड़, मसूरिका और तीव्र मस्तिष्कशोथ ( encephalitis ) नामक विषाणुजन्य व्याधियों में औतिकीय चित्र के विभेद का यही कारण है ।
प्रक्षोभक की चण्डता - विभिन्न रुग्णों में प्रक्षोभक अभिकर्ता ने किस मात्रा में आक्रमण किया है इस पर भी औतिकीय चित्र में विभेद हो जाता है। इसी कारण किसी व्रणशोथ को 'मृदु' ( mild ) और किसी को 'तीव्र' ( acute ) शब्दों से प्रकट किया जाता है । प्रक्षोभ की मात्रा के साथ व्यक्ति की प्रतिक्रिया भी विशेष कार्य करती है । तीव्र स्वरूप की मात्रा व्यक्ति की विजयवाहिनी शक्ति के कारण 'मृदु' आक्रमणकारिणी होती है इसी प्रकार इसका विलोम भी समझना चाहिए । बालकों में थोड़ा संसर्ग भी तीव्र व्रणशोथकारक हो सकता है जब कि प्रौढ़ बड़े संसर्ग पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं । इस प्रकार प्रक्षोभ की चण्डता प्रक्षोभक की मात्रा, रुग्ण की प्रतीकार शक्ति तथा व्यक्ति की वय के अनुसार बदला करती है ।
प्रक्षोभक का क्रियाकाल - कितने समय तक कौन प्रक्षोभकर्ता ने व्यक्ति पर आक्रमण किया है इसके अनुसार व्रणशोथ की तीव्र, अनुतीव्र अथवा जीर्ण अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त होता है । प्रत्येक प्रकार के व्रणशोथ में ये तीनों अवस्थाएं कम या अधिक पाई जा सकती हैं । प्रक्रिया वही होती है पर किस अंश में कौन प्रक्रिया चली है यही विभेद कर देता है । किसी में वाहिन्य परिवर्तन ( vascular changes ), प्रमुख - तया देखे जाते हैं; किसी में तन्तुरूहों ( fibroblasts ) का प्रगुणन होता हुआ देखा जाता है; किसी में रक्तरस का निःस्राव होता है; कहीं पुरुन्यष्टिकोशा का संचय होता है | विविध अवस्थाओं के ये प्रतीक विशेष प्रकार के व्रणशोथ के विशिष्ट लक्षण न होकर सभी में अवस्थानुरूप मिल सकते हैं ।
एक से दूसरी प्रावस्था ( phase ) में विभेदक रेखा खींचना सम्भव नहीं है । फिर भी प्रत्येक प्रावस्था में क्या क्या होता है इसकी स्थूल बातें स्मरण रखना सदैव लाभप्रद देखा जाता है जिन्हें हम नीचे देते हैं
व्रणशोथ की तीव्रावस्था- इसमें निम्न विशेषताएँ मिलती हैं:
( १ ) अधिरक्तता ( hyperaemia ) (२) मेघाभशोथ ( cloudy swelling )
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