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*प्राकृत व्याकरण
होते हैं। इन में सूत्र-संख्या -१४७ से मूल संस्कृत शब्द "रति" में स्थित "'का लोप, ३-८ से संस्कृतीय पचमी विभक्ति के वचन में प्रारम्य प्रत्यय "इसि" केल्यानपर प्राकृत में कम से 'मो, और हिलो, प्रत्ययों की प्रापिर गौर -10 से सदानमा वीमाईको प्राप्ति होकर कम से तीन रूप 'रईबी, रईस, और रईहिन्को' सिद्ध हो जाते हैं।
'वच्छेण रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-F७ में की गई है। 'छस्स' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१४९ में की गई है। 'पश्चम्मि' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ११ में की गई है। 'पच्छाओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १२ में की गई है।
मुगभा-संस्कृत प्रबमान्त एक वचन रूप है। इसका प्राकृत रूप मुद्धा होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७७ से हलन्त 'म' का लोप; २-८६. से 'ध्' को द्वित्व 'ध घकी प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'घ, के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति; ४-४४८ से संस्कृतीय प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्तध्य प्रत्यय 'सि ( की इत्संज्ञा होने से ) स' की प्राप्ति, और १-११ से प्राप्त अन्स्य हलन्स 'स' का सोप क्षेकर प्राकृत रूप मुस्खा सिद्ध हो जाता है।
'सद्धी':-हप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१८ में की गई है।
सखी:-संस्कृत प्रथमान्त एक वचन रूप है। इसका प्राकृत रूप सहीं होता है। इसमें सूत्रसंख्या १-१७ से 'ख' के स्थान पर ह' की प्राप्ति; ४-४४८ से संस्कृतीय प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि= (१ को इत्संज्ञा होने से ) =स की प्राप्ति' और १-११ से प्राप्त अन्त्य हलन्त 'म' का लोप होकर प्राकृत रूप सही सिद्ध हो जाता है।
धेणू रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३१९ में की गई है।
वा संस्कृत प्रथमान्त एक वचन रूप है। इसका प्राकृत रूप टू होता है । इसमें सूत्र-संख्या १.८ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; ४-४१८ से संस्कृतीय प्रयमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि- (1' की इसंशा होने से ) मा की प्राप्ति और १-११ से प्राप्त मन्च ' का लोप क्षेकर प्राशाल रूप 'यतू सिद्ध हो जाता है । ३-२६. It.
नात आत् ॥३-३०॥ स्त्रियां वर्तमानादादन्तायामः परेण टा उस् छि उसोनामादादेशो न ममति ॥ मालाम । मालाइ ! मालाए कसुह टिनं भागयो वा ॥