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* प्राकृत व्याकरण *
[३६७ ]
___ अर्थ:-'पीसना, चूर्ग करन।' अर्थक संस्कृत-धातु 'पिष' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से पांच धातु रूपों की मादेश प्राप्ति होती है। जो कि कम से इस प्रकार है:-- (१) णिवह, (२) गिरिणास, (३) णिरिणज्ज, (५) रो छ और (५) चह। वैकल्पिक पक्ष होने से 'पीस' भो होता है। उक्त छह धातुओं के उदाहरण इस प्रकार है :-पिनष्टिं [१] णियहइ, [P] णिरिणासह [2] णिरिणज्जा, [४] रोचड़, [५] चह और [] पीसह = वह पोसता है अथवा वह चूर्ण करता है। ॥४-१८५।।
भषे भुक्कः ॥ ४-१८६ ॥ भषे झुक इत्यादेशी वा भवति ॥ भुक्कइ । भसइ ।
अर्थ:--'भूकना, कुत्ते का बोलना' अर्थक संस्कृत-धातु 'भष' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'भुक' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'भस' भी होता है जैसेः- भपति मुक्कइ अथवा मसइ = वह (कुत्ता) भूकता है । ४-१८६ ।।
कृषः कड्ढ-साअड्ढाञ्चारण च्छायञ्छाइञ्छाः ॥४-१८७॥
कृषरेते पडादेशा वा भवन्ति ॥ कडूइ । साअड्इ । अञ्चइ । अणच्छह । अयञ्छ। । आइञ्छइ । पक्षे । करिसइ ।
अर्थः-खेती करना, अथवा खींचना' अर्थक संस्कृत-धातु 'कृष' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से छह धातु-रूपों की श्रादेश प्राप्ति होती है। जो कि कम से इस प्रकार है (१) कट्ट, (२) माअड्ड (३) अञ्च, (४) अणच्छ, (५) अयञ्च और (६) पाइन्छ। वैकल्पिक पक्ष होने से 'करिस' भा होता है । उक्त एकार्थक सातों धातु मों के उदाहरण कम से इस प्रकार है:-कर्षति = [१]कड्डइ. [PJ साअडुइ, [३] अञ्चइ, [४] अणच्छर, [५] अयञ्छइ, [F] आइञ्छइ और [७] करिसा - बइ बींचता है अथवा वह खेती करता है ।। ४-१५७॥
असावखोडः ॥४-१८८ ॥ असि विषयस्य कृषेरक्खोड इत्यादेशो भवति ॥ अक्खोडेइ। असि कोशात् कर्षतीत्यर्थः ।।
अर्थ:-'तलवार को म्यान में से खींचना' इस अर्थक संस्कृत-धातु 'कृष' के स्थान पर प्राकृतभाषा में 'अक्लो' धातु-रूप को आदेश प्राप्ति होती हैं। जैसे:-- कर्षति = अक्खोडेइ = वह तलवार को म्यान में से ) खींचता है ।।४-१५८ ।।