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* प्राकृत व्याकरण * 00000000000000rstrarat00000rrentrorstv.0000000pcorsonsorseonto001 दूरात - तुरातु = दूर से । (३) त्वत् = तुमातो, तुमातु = तेरे मे-तुझ से। (४) मत-ममाती, ममान = मेरे से-मुझ से ।।। ४.३२१ ॥
त दिदमोष्टा नेन स्त्रियां तु नाए ॥ ४-३२२ ॥ पैशाच्यां तदिदमोः स्थाने टा प्रत्ययेन सह नेन इत्यादेशो भवति ॥ स्त्री लिंगे तु नाए इत्यादशो भवनि ।। तत्थ च नेन कत-सिनानन ॥ स्त्रियाम् । पूजिता च नाए पातग्गकुसुमपत्तानेन । टेति किम् । एवं चिन्तयन्ती गतो सो ताए समीपं ।।
अर्थ:-पैशाची भाषा में 'सत्' सर्वनाम और 'इदम' सर्वनाम के पुल्लिग रूप में तृतीया-विभक्ति के एकवचन में 'टा' प्रत्यय सहित अर्थात 'अंग + एयश नं. प्रधान से मादेश-नानी है। जैसेः- (१) तद् + टाम्ते न - नेन = उस (पुरुष) स । (२) इदम् +21 - अमेन - नेन-इम (पुरुष) सं। इसी प्रकार से उक्त 'तद् और इदम्' नामों के स्त्री जिंग रूप मा तृगया-विभक्त के पकवचन में 'टा' प्रत्यय सहत (अर्थात अंग और प्रत्यय दोनों के स्थान पर) 'नार का श्रादेश-प्राःम होती है जैसे:-(१) तद् + टा= तया - नाए = उम (स्त्री) स । (२) इदम् + टा = अनया-नाए = इस (स्त्री) सं ॥ अन्य समाहरण इस प्रकार से हैं;-(१) तत्र घ तेन कृतस्नाने तत्थ च नेन कत-नान और वहाँ पर स्नान किए हुए उस (पुरुष) से । (२) पूजित तया पादाय (प्रत्यग्र)-कुसम-प्रदानेन-पूजिती च नाए पातरम कुसुम प्यतामेन - और वह पैरों के अग्र भाग में फूलों के समर्पण द्वारा उस (स्त्री) से पूजा गया ।
प्रश्न:-मूल सूत्र में 'टा ऐसे तृतीया-विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय को क्या संग्रहित किया
गया है?
उत्तर:-'तद' और 'इदम' भवनामों की अन्य विभक्तियों में इस प्रकार 'अंग और प्रत्यय' के स्थान पर उक्त रीति से बने बनाये 'रूपों की प्राप्ति नहीं होता है; इसलिये जिस विभक्ति में बनती हो, उप्ता विभक्ति का उल्लेख किया जाना चाहिये; तदनुसार ततीया-विभक्ति में ऐसा होने से मूल सूत्र में यों तृतीया-विभक्ति के एकवचन के सूचक 'टा' प्रत्यय का संग्रह किया गया है। उदाहरण यों है:एवं चिन्तयतो गतो सः तस्याः समीप एवं चिन्तयन्तो गतो सो ताए समीप-इम प्रकार से विचार करता हुश्रा वह उस (स्त्रो) के दाम में गया। यहाँ पर 'ताए' में षष्ठी विभक्त है अत: 'नाए' रूप की प्रानि यहाँ पर नहीं हुई है। यों 'नाए' रूप की प्राप्ति कंवल 'टा' प्रत्यय के साथ में ही जानना चाहिये । ॥४-३२२।।
शेषं शौरसेनीवत् ॥ ४-३२३ ॥