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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[५०७ ] omimeo000000000000000000000000wwwrecoroorwooooooooooooooterrorani हो । युष्मान् पश्यति = तुम्हे पेच्छद अथवा तुम्हइं पेच्छन - तुमको यह देखता है आपको वह देखता है। इन भादेश प्राप्त पदों को पृथक पृथक रूप से लिखने का तात्पर्य यह है कि "दोनों ही पद" प्रथमा
और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में समान रूप से होते हैं; क्रम से नहीं होते हैं । यो "यथासंख्य" रूप का अर्थात "कम-रूप" का निषेध करने के लिये ही "वचन-भेद' शब्द का वृत्ति में उल्लेख किया गया है ॥४-३६६ ॥
ट-उयमा पई तई ॥ ४-३७० ॥ अपभ्रशे युष्मदः टा डि अम् इत्येतैः सह पई तई इत्यादेशौ भवतः ॥ टा।
मुई मुकाहं वि वर-तरु फिट्टई पत्रचणं न पत्ताणं ॥ तुह पुणु छाया जइ होज्ज कहवि ता तेहिं पत्तेहिं ।।१॥ मधु हिअ तई ताए तुहं सवि अन्ने विनडिज्जइ ।।
पिका दाई कर छाई हु को चिनिज्जइ ॥२॥ ङिना।
पई' मई बेहिं वि रण-गहिं का जयसिरि तक ई॥
केसाई लेपिणु जम-परिणि भण सुहु को थक्के इ ॥३॥ एवं तई। श्रमा
पई मेलन्तिहे महू भरणु मई मेल्लन्तहो तुझ ।।
सारस जसु जो वेग्गला सो कि कृदन्तही समु ॥४॥ एवं तहं॥
अर्थः-अपभ्रश भाषा में 'युष्मद्' सर्वनाम में तृतीया विभक्ति के पकवचन में 'टा' प्रत्यय का योग होने पर मूल शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर पई और तई ऐसे दो पदों को नित्य श्रादेश प्राप्ति होती है । इसी प्रकार से इसी 'युष्मद्' सर्वनाम में सामी विभक्ति वाचक 'सि' प्रत्यय की संप्राप्ति होने पर मूल शब्द और प्रत्यय दोनों के हो स्थान पर 'पई और तई ऐसे दो पदों की नित्य आदेश भाप्ति जानना चाहिये । यही संयोग द्वितीया विभक्ति वाचक प्रत्यय 'श्रम्' के मिलने पर भी मूल शब्द "युष्मद्'
और प्रत्यय 'मम्' दोनों का लोप होकर दोनों के स्थान पर भी 'पई और तई पदों को श्रादेश प्राप्ति नित्यमेव हो जासो है। मूल सूत्र में "टा, कि अम्' का क्रम व्यवस्थित नहीं होकर जो अव्यवस्थित कम चतताया गया है अर्थात् पहिले 'द्वितीया, तृतीया और सप्तमी' का क्रम बतलाना चाहिये था वहाँ पर 'तृतीया, सप्तमी और द्वितीया' का क्रम बतलाया है, इसमें 'सूत्र रचना' से सम्बन्धित सिद्धांत कारण रूप