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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[ ५०५ ] moor.000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000001
जा ससणहो तो मुइभ अह जीवइ निम्नेह ।।
बिहिं वि पयारेहिं गहन धण किं गज्जहि खल मेह ||४|| अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में 'कि' सर्वनाम के स्थान पर मूल अंग रूप से 'काई' और 'कवण' ऐसे अंग रूपों की आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है। पक्षान्तर में 'कि' अंग रूप का सदुभाव भी होता है। 'काई' के विभक्ति वाचक रूपों का निर्माण 'बुद्धि' आदि अथवा 'इसी' आदि इकारान्त शब्दों के समान जानना चाहिये । कुछ उदाहरण इस प्रकार है:-(१)किमू-काई -क्यों अथवा किस कारण से । (२) का-कषण = कैप्सी ? (३) केन = करणेण-किस कारणं से । (४) किम कि क्यों: इत्यादि ।। वृत्ति में दी गई गाथाओं का अनुवाद कम से इस प्रकार है:-- संस्कृतः-यदि न म प्रायाति, दति ! गृहं किं अधो मुखं तव ।।
वचनं यः खंडयति तब, सखिके ! सप्रियो भवति न मम ||१|| हिन्दी:-नायिका अपनी दूती से पूछती है कि:-हे दूते यदि वह (नाय) मेरे घर पर नहीं आता है, तो (तू) अपने मुख को नोचा क्यों ( करती है ) ? हे सखि ! जो तेरे वचनों को नहीं मानता है अथवा तेरे वचनों का उल्लङ्घन करता है; वह मेरा प्रियतम नहीं हो सकता है' ॥१॥ ... संस्कृतः-स्फोटयतः यो हृदयं प्रात्मीयं, तयोः परकीया का घृणा? .
रचत लोकाः पारमानं चालायाः, जाती विपमी स्तनी ॥२॥ हिन्दी:- जो स्वयं के हृदय को चोर करके अथवा फोड़ करके उत्पन्न होते हैं। उनमें दूसरों के लिये दया के माष कैसे अथवा क्यों कर हो सकते हैं ? हे लोगों ! अपना बचाव कर्ग; इस चाली के दो (निर्दयी और) कठोर स्तन उत्पन्न हो गये हैं ॥ २॥ संस्कृतः -सुपुरुषाः कंगोः अनुहरन्ति भण कार्येण केन ?
यथा यथा महत्तं लभन्ते तथा तथा नमन्ति शिरसा ॥३॥ हिन्दी:-कंगु नामक एक पौधा होता है, जिसके ज्यों ज्यों फज़ आते हैं त्यों त्यों वह नोचे को ओर झुकता जाता है; उसो का आधार लेकर कवि कहता है कि:-कृपा करके मुझे कहो कि किस कारण से अथवा किस कार्य से सज्जन पुरुष कंगु नामक पौधे का अनुकरण करते हैं ? सजन पुरुष जैसे जैसे महानता को प्राप्त करते जाते है, वैसे वैसे वे सिर से मुकते जाते है अथवा अपने सिर को झुकाते जाते हैं । नम्र होते रहते हैं ॥ ३ ॥ . संस्कृत:- यदि सस्नेहा तन्मृता, अथ जीवति.निःस्नेहा ।।
द्वाभ्यामपि प्रकाराभ्यां गतिका, धन्या, कि गजेसि १ खल मेष ॥ ४ ॥