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वह 'मकार' पद के आदि में भी नहीं रहा हुआ हो तथा संयुक्त रूप से भी नहीं रहा हुआ हो। जैसे:कमलम् = कवलु अथवा कमलु-कमल-फूल । भ्रमरः = भरु अथवा =बरा । इन उदाहरणों में 'मकार' पद के आदि में भी नहीं है तथा संयुक्त रूप से भी नहीं रहा हुआ है | व्याकरण सम्बन्धी नियमों से उत्पन हुए 'मकार' के स्थान पर मी अनुनासिक सहित 'वें' की उत्पत्ति भी विकल्प से देखी जानी है। जैसे:-- यथा = जिम अथवा मिव-जिस प्रकार, जिस तरह से । तथा-तिम अथवा तियँ = उस प्रकार से अथवा उस तरह से । यथा = जेम अथवा जेव= जिस प्रकार अथवा जिस तरह से । तथा = तेम अथवा तेच = उस प्रकार अथवा उस तरह से ।
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* प्राकृत व्याकरण *
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प्रश्नः -- ' अनादि' में स्थित 'मकार' के स्थान पर ही वें' की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है; ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- यदि 'मकार' पद के आदि में रहा हुआ हो तो उसके स्थान पर 'बँकार' की आदेश प्राप्ति नहीं होगी। जैसे:-मदन- मय मदन- कामदेव । यहाँ पर 'मकार' के स्थान पर 'बॅंकार नहीं होगा | क्योंकि यह मकार आदि में स्थित है।
गया है ?
प्रश्नः - 'संयुक्त रूप से रहे हुए 'मकार' के स्थान पर ही 'बँकार' होगा; ऐसा भी क्यों कहा
उत्तर:- 'संयुक्त' रूप से रहे हुए 'मकार' के स्थान पर 'बॅंकार' की श्रदेश प्राप्ति नहीं होती है; ऐसी अपभ्रंश भाषा में परंपरा है; इसलिये 'संयुक्त' मकार के लिये 'बॅंकार' की प्राप्ति का निषेध किया गया है । जैसे::- जन्म - जम्मु - जन्म होना- उत्पत्ति होना । यहाँ पर 'मकार' संयुक्त रूप से रहा हुआ है इसलिये 'बँकार' की यहाँ पर आदेश प्राप्ति नहीं हो सकती है । तस्य परं सफलं जन्म तसु पर सभतउ जम्मु = उसका जन्म बड़ा ही सफल है। पूरी गाथा सूत्र संख्या ४-३६६ में दी गई है |
४ ३६७ ।।
बाधो रो लुक् ॥ ४-३६८ ॥
अपभ्रंशे संयोगादधो वर्तमानी रेको लुग् वा भवति ॥ जइ केवइ पाचीसु पिउ ( देखो - ४-३६६ ) पक्षे । जह भग्गा पारकडा तो सहि । मज्भु प्रियेण ॥
अर्थ:-संस्कृत भाषा के किसी भी पद में यदि रेफ-रूप 'रकार' संयुक्त रूप से और वर्ण में परवर्ती रूप से अर्थात् अधी रूप से रहा हुआ हो तो उस रेफ् रूप 'रकार' का अपभ्रंश भाषा में विकल्प से लोप हो जाता है । जैसेः- यदि कथंचित् प्राप्स्यामि प्रियं = जइ केवह पात्रीसु पिउयदि किसी भी तरह से प्रियतम पत्ति को प्राप्त कर लूँगी। इस बदाहरण में 'प्रिय' के स्थान पर 'पिंड' पद को लिख करके 'प्रियं' में स्थित रेफ रूप 'रकार' का लोप प्रदर्शित किया गया है। पचान्सर में जहाँ रेफ रूप 'रकार को लोप नहीं होगा, उसका उदाहरण इस प्रकार से है:- यदि भग्नाः परकीयाः तत् सखि ! सम प्रियेण=जइ