Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 638
________________ गोरी अहि स्त्री. (गोथी:) गौरी के महिला के, श्री. (गौरा) गोरी महिला पनि गोली " 11 प्रह " गेर सक. (ग्रहणाति) वह ग्रहण करता है, गृues सक (प्रहणाति) वह ग्रहण करना है, 'ग्रहन्ति स ( ग्रहणन्ति ) वे लेते हैं, ३४१ । 12 'घेous कर्मणि (गृह्यते) ग्रहण किया जाता है, २५६, 가 घेप्पन्ति कर्मणि (गृह्यन्ते "गेण्डिज्जइ कर्मणि (गृह्यते गेह सं. कृ. गृहीत्वा ग्रहण करके, 28 घेत सं कृ (गृहीत्वा ) ग्रहण करके, गृहेपि सं. " घई पंघल घट् 21 19 " 'घेत्तुं वेन्द्रण, घेत ( ग्रहीतुम. गुड़ीया, ग्रहीतव्यम्) ग्रहण करने के लिये, ग्रहण करके, ग्रहण करना चाहिये, २१. । 99 " זי घड सक. (घटयति वह बनाता है; रचता है, १२ । घडदि सक. (घटयति वह बनाता है, जोडता है, ४०४ । " घडेह सक. (घटयति) वह मिलाता है निर्माण करता [ ३२ ] ४१४ ॥ पार्वती; ३२६ ॥ ST २०९ । ३३६ । ३४९ । ग्रहण किये जाते है,३३५ । ग्रहण किया जाता है. २२६ । २१० । घडि वि. (घटित) निर्माण किया हुआ, " घडि वि. (घटितः) निर्माण किया गया है. 29 घणा २१० । (गृहीत्वा ) ग्रहण करके, ३९४,४३८ । | घत्त है; ५० ॥ घडावइ सक. (घटयति ) वह निर्माण करता है, ३४० [ च ! ar (अनको निपातः) अर्थहीन अध्य. ४२४ । न. (फट ) ( फलहा ) झगड़े, ४२२ ) उates सक. (उद्घाटयति ) वह खोलता है, ३३ / ११३ १ संघes अक (संघटति वह प्रयत्न करता है, "3 घख पु. (घट) घड़ा, कुम्भ, ३५१, ३९५, ४३९ । 'घबुक्कय पु. ( घटोत्कच) भीम पांडव का पुत्र २९९ । " चरण स्त्री. (घृणा) घृणा नफरल ३५०, ३६७ । घण वि, पु. ( घन) सघन, बहुत बड़े-बड़े हथोड़ा, १८७, ४ ४, ४३८ । स्त्री. वि. (घृणा) नफरत, बहुत, ४२२, ४३९ / न. (घातम् ) चोट; आभात! ४१४ । ४११ ४१४ । ३३१ । घत्तइ 231 घम्मो घर נ 11 न. (गृहम् ) घर ३६४ वह न. ( गुम् ) घर ३४१, ३४३, ३५१, ३६७. ४२२ । ४२३,४३६ । ४२२ । घरि न. ( गुहे) घर में, घरहिं न. ( गुहे) घर में ही. घरिणी स्त्री. (गृहिणी) पनि घर की स्वामिनी २७० । घज्ञह सम. (क्षिपति ) वह फेंकता है, वह रगड़ता है, ३३४, ४२२ । ४२२ । 15 " चत घॉड घुग्धि सक. ( क्षियति) वह फेंकता है, सफ ( गवेशयति) वह ढूंढता है, पु. ( धर्मः) गरमी, धूप, चलन्ति सक. (विपत्ति) फेंकते हैं. पु. ( घातः) चोट, आघात स्त्री. ( चेष्टाम् ) बंदर की चेष्टा को, १४३ । १८९ ३२८ १ च ३९५ । घुडुक्कट अक (शत्यायते खटकती है, घुएटेहिं सं कृ ( घुट् प्रशब्दं कृत्वा) घुट् घुट् शब्द करके, ३४६ । ४२३ । ४२३ । घुम्मइ अंक. (घूर्णते ) यह घूमता है. चक्राकार फिरता है. ११७ घुसलइ सक. ( मध्नाति) वह मयता है, मर्दन करता है, १२१ । १० । घोट्टई सक. (पिवति) पीना है. घोड़ा पु. (ar) घोड़े, ३३०, ३४४. ३६३ । घालइ अक (घूर्णते) वह घूमता है. चक्राकार फिरता है, ११७ । [च] व म. (च) और, २६५, ३२१,३२२, ३२३ ॥ च अ. (एव) ही, १८६ | चत्र वि. (चतुर्) चार ३३१ । यवमुहु वि. पु. ( तुर्मुखः चार मुख वाला ब्रह्मा, चक्खि चश्वरं पु. (चक्रण) चक्रवाक पक्षी से, वि. (मास्वादिकम् ) चला हुआ, दि. (जर्जग्म्) ( चूलिका पैशाची में) जीणं हुआ, २५८ १ ३२५ । १ । चरिचक्र वि. दे. (स्वासकम् ) मंडित, विभूषित ३९ । चच्चुप्पइ सक. ( अर्पयति ) वह अर्पण करता है, सक, ( तक्ष्णोति) वह खोलता है, काटता है, च १६४ । ३३१ । ४४४१

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