Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 637
________________ रह [ ३१ । " संगच्छइ सक. (संगच्छति) वह स्वीकार करता है, | गिलिगिलिसक. (गिल मिल निगल जा, निगल जा,३९६ । ६.' कि , लिस्य) निगला जाता है. ३७० । गमेसह सक. (गवेषयति) वह बढता है, १८९ . | गिलो पु. (गिरिः) पहाड, २८७ । गय पु. (गज) हाथी, ३३५, ३४५, ३८३ । | गुरुजइ अक. (हसति) वह हँसता है ३९५, ४१८, ४३९, ४४५। गुरुजल्ला अक. (उल्लसति) वह विकसित होता है, २०२ । गयणि न. (गगने) आकाश में, ३९५ । गुब्जोङ्गइ अक. (उजमति) वह विकसित होता है, ०२। गयगायलु न. (गगनतलम) आकाश-प्रदेश ७६। पु.(गोष्ठ) गवाड़ा, पाड़ा विशेष, ४१६ । गाद अक. (गर्जति गर्जना करता है, २९२ । पु.न. (गुण) गुण, अध्छी बातें,२९२,३३८, गरुपा वि. (गुरु) बड़े, (गुरुका) बड़ी, ३४० । १७२, ४१४ । ४१८ । ' " गुणु पु.न. (गुणः) गुण, अच्छी बातें, ३९५ । " गलन्ति अक. (गलन्ति) वे अलग होते हैं, सड़ते हैं : " गुणहिं पू. न. (गुण, गुणेषु) मुणों से-में, ३३५, ३४७,४००, ४१८ । " अगलिन वि. (अगलित) समाप्त नहीं हुआ, ३३२ । | गुणइ सक. (गणपति) वह गिनता है, ४२२ । " विगलइ अक. (बिगलति) वह गल जासा है, १७५ 1 ! गुण्ठा सक. (उद्बुलयति) वह धूल बाला करता है, गलत्याइ सक. (क्षिपति) वह केंकता है, १४३ ।। गलि पु.(गले) गले में, ४२३।गुन पु. (गुण) गुण, अच्छी बातें, ३०६ । गयखेहिं पु. (गवाक्षेषु) खिड़कियों में, " गुनेन पु. (गुणेन ) गुण से, ३०६ । गवेसइ सक. (गवेषयति) बहता है, १८९, ४४४ । गत सफ. (प्रसति) गलताहे-खाता है. निगलता है. " गोवइ सफ. (गोपयति) ढांकता है, प्रकट नहीं करता गल गह पु. (ग्रहाः) सूर्य शनि आदि ग्रह, ३८५ । | " गुप्पइ अक. (गुप्यति) बह व्याकुल होता है, १५० । " गहो पु. (पहः) सूर्य शनि आदि ग्रह. ७९।" जुगुच्छइसक. (जुगुप्सते) वह घृणा करता है, ४। गहनं वि. (गहनम्) कठोर, कठिन, गंभीर, ३२३ । । " जुवकछइसक. (जुगुप्सते) वह निंदा करता है, गहिरिम . स्त्री. (गभीग्मिाणम्) गंभीरता को, महा । " विगुत्ताई वि. (विनाटिता। दुःखी हो गये हैं. ४२१। गुम्मइ अक. (मुह्यति) वह मुग्ष होता है, २०७ । गा-गा-गाइ सक, (मायति) गाता है, ६। गुम्मडइ अक. (मुह्यति) वह धबड़ाता है. मुग्ध होता है, " गिय्यते कर्मणि (गीयते) गाया जाता है, ३१५ । २०७। गार्म नं. (गानम्) गायन, गीत, वि. (गुरू) बड़ा, गामा पु. (मामानाम। गांवों का, (ग्रामयोः। दो गांवों | गलगुब्छइ सक. (उषामयति) वह ऊंचा करता है-फेंकता का ४०७। है, ३६, १४४। गिज्मा अक. (गृभ्यति) वह मासक्त होता है, २१७ । | गुललइ सक. (चाटु कोति) वह खुशामद करता है, गिम्मो पु. (ग्रीष्मः) गरमी की ऋतु ४१२। गिम्ह पु. ग्रीष्मः) गरमी की ऋतु, २८९। | गोटडा वि. (गोष्ठस्थाः ) बाड़े में बैठे हुए, ४२३ । " गिम्हु पु. (ग्रीष्मः) गरमी की ऋतु. ३५७ । । गोरडी स्त्री. (गौरी) महिला, पनि, ३९५, ४२०, गिय्यते कर्मणि (गीयते) गाया जाता है, ४३१, ४३६ । गिरी पु. (गिरिः) पहाड़, ३३७, ४४५। गोरि श्री. (गोरी) महिला, परिन, ३२९, १८३ । गिरिहे पु. (गिरे) पहाड़ से, ३३१ ।। गोरी स्त्री (गौरी) महिला, पलि; ३९६, ४०१, स्त्री (गारा) माह गिलमणु वि. (असममनाः निगल जाने की इच्छावाला, | ४१८ ४५ 1 | गोरिहे श्री. (गोर्माः) गोरी के महिला के; ३९५ ।

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